Saturday 27 September 2008

शादी के जो अफ़साने हैं रंगीन बहुत हैं...

शादी के जो अफ़साने हैं रंगीन बहुत हैं,
लेकिन जो हक़ीक़तें हैं संगीन बहुत हैं,

इबलीस बेचारे को ही बेकार न कोसो,
इन्सान के अन्दर भी शैतान बहुत हैं,

बख्शीश की सूरत उन्हें देते रहो रिश्वत,
सरकार के दफ़्तर में मस्कीन बहुत हैं,

इस दौर के मर्दों की जो शक़्ल शुमारी,
साबित हुआ दुनिया में ख़वातीन बहुत हैं,

जब हज़रते-नासेह ने खाया मुर्ग तंवाला,
फ़रमाया कि दालों में प्रोटीन बहुत है!

5 comments:

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत सुंदर आनंद आ गया
मेरे ब्लॉग पर आपको सरकारी दोहे पढ़ने हेतु सादर आमंत्रण है

दीपक said...

माबदौलत को आपकी ये गजल खुब अच्छी लगी !!आज से ताजमहल आपका!!हा हा हा

ऋतेश त्रिपाठी said...

दीपक भाई, अब नौकरी चूँकि गाज़ियाबाद में है,आप अक्षरधाम या सफ़दरजंग का मक़बरा दिलवा देते तो अच्छा रहता,,,ताजमहल बडी दूर है!

दीपक said...

उसके लिये माबदौलत को चचा जान से बात करनी पडेगी !!तब तक ताज से काम चलाइये और वाह ताज कहिये!

Ashok Pande said...

हज़रते-नासेह को रेड मीट से परहेज़ करना चाहिये ऐसा बता रहे थे एक ठो तबीब.

ताजमहल तो नहीं भेज पाऊंगा, हल्द्वानी की सब्ज़ी मंडी से डेढ़ किलो तुरई अभी रवाना करता हूं - आप पता भेजें.

उम्दा!