Tuesday 9 September 2008

खटमल हैं चारपाई में !

नींद यूँ भी कहाँ जुदाई में,
उस पे खटमल हैं चारपाई में,

सामने आऐं तो दुल्हन बन कर,
जान दे दूँगा मुँह दिखाई में,

खुश हुईं उनकी माँ भी अब क्या है,
उँगलियाँ घी में हैं सर कढाई में,

नहीं चेचक के दाग उस रुख पर,
मक्खियाँ लिपटी हैं मिठाई में...

4 comments:

vineeta said...

bahut badhiya. aanand aa gya..

संगीता पुरी said...

बहुत अच्छा।

seema gupta said...

सामने आऐं तो दुल्हन बन कर,
जान दे दूँगा मुँह दिखाई में,
"ha ha ha pehle baar pdha apko, kmal hai, lajvaab"
Regards

वीनस केसरी said...

(नींद यूँ भी कहाँ जुदाई में,
उस पे खटमल हैं चारपाई में,

सामने आऐं तो दुल्हन बन कर,
जान दे दूँगा मुँह दिखाई में,


पढ़ कर अच्छा लगा
कवि ने जो कहना चाहा वो स्पष्ट है


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वीनस केसरी