नींद यूँ भी कहाँ जुदाई में,
उस पे खटमल हैं चारपाई में,
सामने आऐं तो दुल्हन बन कर,
जान दे दूँगा मुँह दिखाई में,
खुश हुईं उनकी माँ भी अब क्या है,
उँगलियाँ घी में हैं सर कढाई में,
नहीं चेचक के दाग उस रुख पर,
मक्खियाँ लिपटी हैं मिठाई में...
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4 comments:
bahut badhiya. aanand aa gya..
बहुत अच्छा।
सामने आऐं तो दुल्हन बन कर,
जान दे दूँगा मुँह दिखाई में,
"ha ha ha pehle baar pdha apko, kmal hai, lajvaab"
Regards
(नींद यूँ भी कहाँ जुदाई में,
उस पे खटमल हैं चारपाई में,
सामने आऐं तो दुल्हन बन कर,
जान दे दूँगा मुँह दिखाई में,
पढ़ कर अच्छा लगा
कवि ने जो कहना चाहा वो स्पष्ट है
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वीनस केसरी
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