Friday 31 October 2008

बुढ़ापा मत देना हे राम!

बुढ़ापा मत देना हे राम! बुढ़ापा मत देना हे राम!
साठ साल की बुढ़िया हो गई है बिल्कुल बेकाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!

आँत भी नकली, दाँत भी नकली आँख पे चढ़ गया चश्मा
काँटा लगा दिखाई ना दे तब्बू और करिश्मा
देख के भागे दूर लड़कियाँ जैसे हूँ सद्दाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!

परियों-सी सुंदरियाँ बोलें बाबा, कहें खटारा
ऊपर राख जमी लेकिन भीतर धधके अंगारा
मन आवारा बंजारा तन हुआ रसीला आम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!

पहले बुढ़िया थी ऐश्वर्या मैं सलमान के जैसा
अब वो टुनटुन जैसी लगती मैं महमूद के जैसा
दिल अब भी मजनूँ जैसा है अंग-अंग गुलफ़ाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!

फ़ैशन टी.वी. वाली छमिया जी हमरा ललचाए
चले 'रैंप' पर मटक-मटक 'कैरेक्टर' फिसला जाए
कैसे जपूँ तुम्हारी माला जी भटके हर शाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!

'व्हिस्की' छूट गई लटकी है 'ग्लूकोज' की बोतल
जी करता 'डिस्को' 'पब' जाऊँ पाँच सितारा होटल
'डांस बार' में बैठूँ चाहे हो जाऊँ बदनाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम।

पाल-पोसकर बड़े किए वो लड़के काम न आए
मुझे बराती बना दिया दुल्हन को खुद ले आए
मैं भी दूल्हा बनूँ खर्च हों चाहे जितने दाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!

उमर पचहत्तर अटल बिहारी को दी तुमने क्वारी
मेरी तो सत्तर है किरपा करिए कृष्ण मुरारी
गोपी अगर दिला दो तो बनवा दूँ तेरा धाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!

रोम-रोम रोमांस भरा है राम न दिल को भाएँ
अस्पताल जाऊँ तो नर्सें हँस-हँस सुई चुभाएँ
कामदेव यमराज खड़े हैं दोनों सीना तान।
बुढ़ापा मत देना हे राम!

लोग पुराना टीव़ी लेकर जाएँ नया ले आएँ
हम टूटी फूटी बुढ़िया को किससे बदलकर लाएँ
'फेयर एंड लवली' छोड़के बैठी रगड़ रही है बाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!

क्लिंटन की तो खूब टनाटन मिलवाई थी जोड़ी
मेरे लिए ना उपरवाले कोई मोनिका छोड़ी
खुशनसीब होता गर मुझ पर भी लगता इल्ज़ाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!

मेरे संग-संग हुई देश की आज़ादी भी बूढ़ी
जनता पहने बैठी नेताओं के नाम की चूड़ी
अंग्रेज़ों से छूटे अंग्रेज़ी के हुए गुलाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम


-डॉ. सुनील जोगी

Wednesday 22 October 2008

बीवी-नामा...

शौहर को इस तरह से सताती हैं बीवियाँ,
ताने सुना के आँख दिखाती हैं बीवियाँ,

इन बीवियों की भूख की शिद्दत न पूछिये,
खाने के साथ सर भी तो खाती हैं बीवियाँ,

कुछ लोग डर के नींद में बीमार पड़ गये,
सुनते हैं उनके ख्वाब में आती हैं बीवियाँ,

शौहर कि जेब से तो इन्हें प्यार है मगर,
उससे ही दुश्मनी भी निभाती हैं बीवियाँ...

Monday 20 October 2008

हिंग्रेज़ी कविता...

क्या बिंदास हवा चल रही है,
बर्ड गाना गा रहे हैं,
काऊ लोग ग्रास ईट रहे हैं,
स्याणे लोग "सस्ता-शेर" पर लिख रहे हैं,
और
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ढक्कन लोग उसे पढ रहे हैं!! Talking 

Friday 17 October 2008

इश्क़ में ज़िन्दगी मुहाल न हो...

इश्क़ में ज़िन्दगी मुहाल न हो,
तेरे जैसा हमारा हाल न हो,

ऐ ख़ुदा इतना पेट भर देना,
फिर कभी ख्वाहिश-ए-रियाल न हो,

वो भी रखता है जेब में कन्घी,
एक भी सर पे जिसके बाल न हो,

इश्क़ उससे कभी नहीं करना,
जेब में जिसके माल-वाल न हो,

उसको तोहफ़े में गालियाँ देना,
जिसकी शादी में श्रीमाल न हो,

बीवीयाँ खुश रहा नहीं करतीं,
खून में जब तक उबाल न हो...

Wednesday 15 October 2008

हाथों में अब के साल भी पर्चियाँ हज़ारों हैं...

मेरी शादी के लिये दोस्तों लड़कियां हज़ारों हैं,
हर खिड़की में लड़की,और खिड़कियाँ हज़ारों हैं,

एक तुम ही नहीं अकेली मेरे जाल में फँसी,
इस जाल में तुम जैसी मछलियाँ हज़ारों हैं,

लिखा जो तुमने लव-लेटर तो क्या हुआ हुज़ूर,
हमारी दराज़ में इस जैसी चिट्ठियां हज़ारों हैं,

हम वो परवाने नहीं जो शमा पे जल मरें,
हमारे घर में पहले ही बत्तियाँ हज़ारों हैं, 

दिये थे पहले भी इश्क़ के इम्तहान बहुत,
हाथों में अब के साल भी पर्चियाँ हज़ारों हैं,

एक और गई हाथ से तो मलाल क्यूँ करें,
देखिये तो बाग में तितलियाँ हज़ारों हैं,

Monday 13 October 2008

खट्टी कढी औ बैंगन बघारे...

दुआ करने गये किस्मत के मारे,
हुए मस्जिद से गुम जूते हमारे,

अमीरे-शहर की बेटी है कानी,
हुए दामाद के वारे-न्यारे,

वतन वापस आकर भी क्या मिला है,
वही खट्टी कढी औ बैंगन बघारे,

हर एक डरने लगा बीवी से अपनी,
मुक़द्दर किसके अब कौन सँवारे,

खुली जो आखँ तो कुछ भी नहीं था,
ना काज़ी, ना मैं, ना ही छुहारे...

Saturday 11 October 2008

जी चाहता है...

बड़ी तवक्को के साथ हाज़िर कर रहा हूँ...सस्ता शे'र पर पोस्ट किये गये शे'रों में सबसे पाक़ शे'र...दिल थाम के पढिये...फ़िर जी खोल के मुझे गालियाँ(दाद) दीजिये-

जी चाहता है तेरी ले लूँ,
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सारी मुसीबतें उम्र भर के लिये,
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तुझ को देख कर मेरा उठा है,
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हाथ दुआ करने के लिये....

Friday 10 October 2008

मुखतलिफ़ अश'आर..

(1)
इश्क़ में हमने क्या क्या पाया है?
हाथ पैर टूटे,मुँह से लहू आया है
अस्पताल पहुँचने पर नर्सों ने ये फ़रमाया है,
बहारों फूल बरसाओ,आशिक़ पिट के आया है..

(2)
(इरफ़ान जी से  माफ़ी की गुज़ारिश के साथ)

भाई इरफ़ान की शादी में हमने पी ली शराब,
भाई इरफ़ान की शादी में हमने पी ली शराब,
फिर जो हुई तबीयत खराब,
दे पेशाब पे पेशाब,दे पेशाब पे पेशाब..

(3)
इस खौफ़ से बाहर निकलना छोड़ दिया गालिब
कि कहीं कोई लड़की फिर खुदकशी न कर बैठे !

(4)
ये कह कर मकान-मालिक ने घर से निकाल दिया फ़राज़,
तू शाहीन है बसेरा कर पहाड़ों की चट्टानों में...

Wednesday 8 October 2008

बकवास और टोटल टाईमपास...

ये बात समझ् में आई नहीं,
अम्मी ने मुझे समझाई नहीं,
मैं कैसे मीठी बातें करूँ,
जब मैनें मिठाई खाई नहीं,
जब बिल्ली शेर की खाला है,
फ़िर हमने इसे क्यूँ पाला है,
क्या शेर बहुत नालायक है,
जो खाला को मार निकाला है,

ये बात समझ में आई नहीं...

क्यूँ लंबे बाल हैं भालू के,
क्यूँ उसने शेव करवाई नहीं,
क्या वो भी गंदा बच्चा है,
या जंगल में कोई नाई नहीं,
ये बात समझ में आई नहीं,
अम्मी ने मुझे समझाई नहीं...

Monday 6 October 2008

मुफ़त की रोटियाँ तोड़ो ससुर जी माल वाले हैं...

करीबन दो-ढाई महीनों से लगातार पोस्टीयाने की वजह से स्टाक की रौनक खतम होने लगी है.सो सस्ता लिखने का फ़ैसला करना पड़ा, नहीं तो अपनी दुकान बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. उम्मीद है ये कोशिश आपको अच्छी लगेगी-

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जहाँ की फ़िक्र को छोड़ो ससुर जी माल वाले हैं,
मुफ़त की रोटियाँ तोड़ो ससुर जी माल वाले हैं,

कि लो गाड़ी नई माडल,बिताओ फ़्रांस में छुट्टी,
कोई मौका नहीं छोड़ो ससुर जी माल वाले हैं,

ये मेरा सूट "अरमानी" ये मेरे शूज हैं "गुच्ची",
घड़ी "रोलेक्स"औ"राडो" ससुर जी माल वाले हैं,

सालियों औ सलहजों से निस्बतें भी ठीक हैं लेकिन,
निगाहें सास पर मोड़ो ससुर जी माल वाले हैं,

सहो बीवी के नखरे तुम दनादन जूतियाँ खाओ,
न उसका हाथ तुम पकड़ो ससुर जी माल वाले हैं,

सभी दामादों में तुमही तो इक चंगेज़ हो लेकिन,
मियाँ यूँ भी नहीं अकड़ो ससुर जी माल वाले हैं,

ये बातें भूल जाओ तुम कभी तुममें भी थी गैरत,
घर के सब आईने तोड़ो ससुर जी माल वाले हैं...

( दूसरा और तीसरा शे'र मित्र  रोहित जैन  के सौजन्य से)

Saturday 4 October 2008

फ़ुटकर शे'र...

(1)
हर गली हर दीवार पर तेरा नाम है,
हर गली हर दीवार पर तेरा नाम है,
ऊपर लिखा है "चप्पल चोर"
और नीचे 5 रुपये का ईनाम है!

(2)
अगर ताँगे में आना था तो पीछे बैठ जाना था,
तेरे पहलू में बैठा कोचवाँ अच्छा नहीं लगता...

(3)
इश्क़बाजी में जान देने लगा,
और आहटों पे कान देने लगा,
जब से देखी पडोसी की मुर्गी,
मेरा मुर्गा अजान देने लगा..

(4)
महफ़िल में इस खयाल से आ गया हूँ मैं,
शायद मुझे निकाल कर कुछ खा रहे हों आप..

(5)
गुनगुनाता नाचता गाता हुआ दरकार है,
दिल को बहलाने की खातिर झुनझुना दरकार है,
इक सहेली दूसरी से हँस के बोली एक दिन,
जिस को शौहर कह सकूँ वो मसखरा दरकार है...

(6)
भैंस की दुम बेसबब नहीं गालिब,
कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है !

Wednesday 1 October 2008

तुम्हारी भूख की खातिर मुझी पर क्यूँ अजाब आये?









तू पापी है तेरी ख्वाहिश है दामन में सवाब आये,
मगर कहता है दिल तेरा बेहिजाबी बेहिजाब आये,

फ़िट्टे उस मुँह से लेता है मेरी बेटी का तू जो नाम,
दुआ है खाक उस मुँह में तेरे भी बेहिसाब आये,

हिफ़ाज़त अब मेरे ईमान की मालिक ही करे लोगों!,
की फ़रमाइश थी ज़मज़म की वो लेकर के शराब आये,

मना कितना किया मैने कहाँ सुनते ससुर जी हैं,
जमीं पर गंद फैली थी पर वो पहने जुराब आये,
 
न जाने कौन सी आंटी ने इनको आँख मारी है,
कि पीरी में भी बुड्ढे पर बहार आये शबाब आये,
 
जो सर अपना झुकाये है, कहे रोकर वही गंजा,
शराफ़त है कहाँ की ये कि तोहफ़े में खिजाब आये,
 
मुझे खाओ नहीं पका के मैं हूँ मजलूम सा पंछी,
तुम्हारी भूख की खातिर मुझी पर क्यूँ अजाब आये? 

मेरे दुशमन की हर मुर्गी ने सोने के दिये अंडे,
मेरी मुर्गी से आये जो सभी अंडे खराब आये, 
 
गरीबी का ये आलम है के सब्ज़ी पर गुज़ारा है,
तेरी किस्मत में ऐ "सस्ते" न जाने कब क़बाब आये...


(चित्र "PETA" से साभार)