Tuesday 18 December 2007

मुकुल की भेजी शायरी

पहन मुद्रिका अंगुरी बांचत फिरत कबीर
यौं मूढन की गांठ हौ काहे हवत अधीर

- कुमार मुकुल


मांग के खाते थे रोटी और सोचते थे
जी रहे हैं लोग यूं भी कोटि-कोटि

- कुमार मुकुल

1 comment:

अजित वडनेरकर said...

अति सुंदर अति सुंदर
दुबर्रर दुबर्रर