१२ नवम्बर को विमल वर्मा जी ने एस एम एस वाली एक अदभुत कविता लगाई थी। आज मुझे एक सज्जन ने उसी का लम्बा वर्ज़न भेज डाला। कुछ जादै सस्ता हैगा:
मैं कल रास्ते में था
कि मेरी चप्पल टूट गई
अब चप्पल तो मोची सीता है
सीता तो दर्ज़ी भी है
दर्ज़ी तो कपडे सीता है
कपडे तो रंगीन होते हैं
रंगीन तो मग भी होता है
मग तो बाथरूम में होता है
बाथरूम में नल भी होता है
नल तो लोहे का होता है
लोहे की तो इस्तरी होती है
इस्तरी तो गरम होती है
गरम तो कस्टर्ड भी होता है
कस्टर्ड तो पीला होता है
पीला तो चूज़ा भी होता है
चूज़ा तो अण्डे से निकलता है
अन्डा तो सफ़ेद होता है
सफ़ेद तो दूध भी होता है
दूध तो भैंस देती है
भैंस तो काली होती है
काला तो बंगाली भी होता है
बंगाली तो पान खाता है
पान तो लाल होता है
लाल तो गुलाब भी होता है
गुलाब में तो कांटे होते हैं
कांटे तो मछ्ली में भई होते हैं
मछ्ली तो अच्छी होती है
अच्छा तो बन्दर भी होता है
बन्दर तो बन्दर होता है
पढ्ने वाले भी तो बन्दर होते हैं
जो पढ के अपना टाइम बरबाद करते हैं
...
खैर ऊपर वाले ने आप को भेजा तो भेजा
पर भेजा तो ऐसा भेजा
कि
भेजे में भेजा नहीं भेजा
...
ये मुझे किसी और ने भेजा
इस लिए मैंने आपको भेजा ।
आप को बुरा लगा?
तो आप किसी और को भेज दो
...
हिसाब
बरोब्बर
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment