Thursday, 20 December 2007

बाग़ीचा-ए-अल्ताफ़

बाग़ीचा-ए-अल्ताफ़* में कुटिया मेरे आगे
धोता है हरेक वक़्त वो पजामा मेरे आगे

(बाग़ीचा-ए-अल्ताफ़: अल्ताफ़ भाई का कालाढूंगी स्थित आम का विख्यात बग़ीचा जहां अब आम नहीं उगते. उस बग़ीचे में अब शंकर की झोपड़ी है. शंकर कालाढूंगी का एक स्ट्रग्लर धोबी है. यह पूरी सूचना सत्य है. उपरिलिखित शेर इसी सूचना पर आधारित है.)

2 comments:

अमिताभ मीत said...

गो तन पे अंगोछा नहीं पैरों में न चप्पल
पाजामे मगर रोज़ बदलता मेरे आगे

Ashok Pande said...

मौज ला दी गुरू. कुछ हफ़्ते हुए इस सीरीज़ का एक शेर यूं शाया हुआ था:

जीजा मुझे रोके है जो खींचे है मुझे गुस्ल
बाबा मेरे पीछे है भतीजा मिरे आगे।

अब आगे बढ़ाएं अमिताभ भाई.