Thursday 13 December 2007

रामाधीन भीखमखेडवी उर्फ़ कल्लोपरी का सबसे पुराना आसिक


'राग दरबारी' जिसने नहीं जानी, वो इसे न देखे

श्रीलाल शुक्ल जी के कालजयी उपन्यास 'राग दरबारी' के एक अविस्मरणीय चरित्र रामाधीन भीखमखेडवी की आत्मा ने कल शहर हल्द्वानी के डहरिया गांव में अपना शेर पूरा किया (परम आदरणीय श्रीलाल शुक्ल जी माफ़ कर देंगे इस शरारत पर)। प्रस्तुत है रामाधीन भीखमखेडवी का चौपाया:

रात को रोशन तू कर और चन्द्रमा सियाह बना
रात होते ही वो दरवाज़ों को सारे भेड जाती हैं
मुझे भी कभू नसीब हो वस्ल महज़बीनों का
कलूटी लडकियां हर शाम मुझको छेड जाती हैं

2 comments:

safkanpur said...

शानदार है। शेर और फोटो वाली शेरनी दोनों।

मुनीश ( munish ) said...

mast !