Thursday, 31 January 2008

ओये कुर्बान !! ओये लाले दी जान!!



ऐसा तो ब्लौग यारों ना मिलेगा कहीं ढूंढें से भी जहन्नुम में
बडे बडे उस्ताद जहाँ करते हैं शायरी चूतिया सी तरन्नुम में!!

देश के भोंदू वीरों के लिए क़सीदा

नाटक देखा, डांट भी खाई, थोड़ा हुए अधीर,
बीवी घर से भाग गई, धनुष मिला ना तीर

एक रुपे का कद्दू खाया, तीन रुपे की खीर
खीस निपोरी, सड़क पे थूका, ऐसे भोंदू वीर

आया मौसम सर्दी का

जब तक समझते मतलब मौसम बदल गया,
इतनी पड़ी है ठंड कि सुई-धागा निकल गया..

मुर्मू मांझी के बाद अब इफ़्फ़न 'घुर्मामारकुण्डवी'

यार उरियां हो गए, जो उरियां किया बिलाग पे
फ़ोन का इक बिल अज़ीज़ो, इफ़्फ़न 'घुर्मामारकुण्डवी' ने

(यह एतिहासिक सेर और इफ़्फ़न 'घुर्मामारकुण्डवी' नामक सायर उस पोस्ट के बाद अस्तित्व में आए जिसे टूटी में कुछ रोज़ पहले लगाया गया था.)

कुछ भेंगे से शेर अर्ज़ करना चाहता हूं

आपने मेरी खड़ी खड़ाई ग़ज़ल को पसंद किया उसके लिये पार्टी आपका शुक्रिया अदा करती है और विश्‍वास दिलाती है रवि रतलामी जी को कि सभी प्रकार की वे ग़ज़लें उनको सुनने को मिलेंगीं जो वे चाहते हैं

shahrukh42 copy

अर्ज़ किया है

बाप को उनके बनाते मूर्ख हम चुपचाप से

और माशूका के भाई के भी बचते ताप से

या ख़ुदा तूने हमें भेंगा बनाया क्‍यों नहीं

देखते महबूब को और बात करते बाप से

प्यार गया पैसा गया और गया व्यापार
दर्शन दुर्लभ हो गए जब से दिया उधार.

(मोहल्ले के एक नाई काका की दूकान के सौजन्य से).

हां पेट में दाना नहीं

हां पेट में दाना नहीं, बोतल में तो रम है
कहने दे मुझे सारा फ़साना यहां आ के

Wednesday, 30 January 2008

खाने को न दे तो फर्क भी क्‍या पड़ता है

अशोक जी ने लिखा है कि नशा दाने दाने को मोहताज कर देता है ये उन्‍होंने एक ट्रक पर से पढ़ा है । अब ये तो उन्‍होंने नहीं बताया कि वे ट्रक के पीछे क्‍या कर रहेथे । खैर मैं जवाब दे रहा हूं और हां एक बात पहले ही बात देता हूं कि भले ही सस्‍ता शेर पर वैधानिक चेतावनी लगी है कि शेर जरूरी नहीं हैं कि लिखने वाले के ही हों पर मैं तो अपने और केवल अपने ही ताज़ा लिखें पेश कर रहा हूं सो चुराने की कोशिश करने पर कापीराइट लग जाएगा ( वैसे हिन्‍दुस्‍तान में कापीराइट चलता ही कितना है )

न दे गर कोई खाने को नहीं दाना भी दे कोई

मगर पीने को तो देगा भला मानुस अगर होगा

एक ट्रक से मिली नसीहत

नशा नाश कर देगा, फिरोगे दाने - दाने को
कटोरा हाथ में होगा, न देगा कोई खाने को

देशप्रेम की कविता




आँखों में पलते ख्वाबों की ताबीर नही देनेवाले,
जन्नत का गुमां हो जिसपर वो जागीर नही देनेवाले,
तुम सुलह करो या जंग करो मर्ज़ी तुम्हारी जो भी करो,
हम जान तो दे सकते हैं, मगर कश्मीर नही देनेवाले...

Tuesday, 29 January 2008

जलाल्बाई !!


अब क्या कीजे बयां उस ज़ालिमा का जलाल /
बस तस्वीर में देखी है , जी को सालता है ये मलाल !!

एक खड़ी हुई ग़ज़ल के कुछ शेर बैठ कर सुनें

आपने कभी खड़ी हुई ग़ज़ल देखी है । यक़ीनन नहीं देखी होगी हुई ही नहीं तो आप देखेंगें कहां से दरअस्‍ल में तो गज़ल या तो बैठी हुई होती है ( मयखाने में ) या फिर लेटी हुई होती है ( उनकी ज़ुल्‍फों की घनेरी छांव में ) । ये पहला प्रयोग किया जा रहा है कि ग़ज़ल को खड़ा किया जा रहा है अपने पांवों पर । ग़ज़ल को खड़ा करने के पीछे शायर का क्‍या मकसद है ये तो उसको खुद को भी नहीं पता पर फिर भी लिखी है तो सुन लो ।

इधर हम खड़े थे, उधर वो खड़े थे

उधर वो खड़े, हम इधर को खड़े थे

खड़े थे इधर हम, खड़े थे उधर वो

खड़े वो उधर, हम इधर जो खड़े थे

न पूछो ये हमसे खड़े थे किधर हम

खड़े तुम उधर, हम इधर तो खड़े थे

बड़ी राह देखी तुम्‍हारी यहां पर

उधर तुम थे और हम इधर लो खड़े थे

भले तख्‍ती कर लो बहर में मिलेगा

के दोनों मिलाकर के दुइ ठो खड़े थे

चलो सुन लो मकता ख़तम खेल हो ये

वहां कुल मिलाकर के हम दो खड़े थे

Monday, 28 January 2008


मूरत को देखकर चुराने का भाव मन में जागता है
गुरु, इसीलिए तो भगवान भक्तों से दूर भागता है.

एक मासूम सी ग़लतफ़हमी

हमें हर वक्‍़त लगता था हमें वे देखती हेंगी

अगर यूं देखती हैं तो यक़ीनन दिल भी वो देंगी

मगर कमबख्‍़त कि़स्‍मत को कहां पर रोइये जाकर

ग़लतफ़हमी हमारी थी उधर तो आंख थी भेंगी

Sunday, 27 January 2008

शेयरों के भाव

सोचा था तेरे देश में मंहगे हैं शेर दोस्त
पर शे(य)रों का भाव यहाँ और भी ख़राब!

(दुष्यंत कुमार से क्षमायाचना सहित).

Saturday, 26 January 2008

यौमे जमहूरी ; २६ जनवरी पर.......

नेता लोग को 'पुदीन-हरा ', पब्लिक को हलवा पूरी ,
ऐ वतन तुझको मुबारक फिर से ये यौमे -जमहूरी !!

Thursday, 24 January 2008


दिलजलों कि महफिल में कुछ दिल्लगी भी जरूरी है,



अमा रम करती है बात सीधी, व्हिस्की तो जी हजूरी है!

Tuesday, 22 January 2008

मासूम सवाल

दिल्ली और गुडगाँव के दर्म्मयाँ क्यूं कोई नदी बहती नहीं / क्यूं याद आती है वो लड़की जो मोहल्ले में अब रहती नहीं !
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Saturday, 19 January 2008

दिल्ली की सर्दियाँ

उफ़ ये नीम नीम दिल्ली की सर्दियाँ , The image “http://www.chakpak.com/se_images/35919_125_125_true/hot-kareena-35919-125125.jpg” cannot be displayed, because it contains errors.
फैशन परेड में मुब्तिला हसीनों की वर्दियां ,

रम के भरे ये पैग और अण्डों की ज़र्दियाँ
यारों रहें सलामत ये दिलकशी के मंज़र ,ये मासूम आवारागार्दियाँ !!

दस-पाँच लडका एक संतोस, गदहा मरले कबहूँ न दोस

अगर आपका नाम संतोष है तो लीजिये आपके लिये एक संतोष की बात-
एक मुहावरा है-दस-पाँच लडका एक संतोस, गदहा मरले कबहूँ न दोस
कहानी इस प्रकार थी-
कुछ लडकों ने एक गदहा मारा. उसके बाद सभी एक पंडित के पास यह जानने के लिये गये कि गदहा मारने पर क्या दोष लगता है. पंडित ने इसे महापाप बताते हुए, उससे मुक्ति के लिये अनेक लंबे-चौडे विधान बताए. इस पर किसी ने कहा कि पंडितजी, आपका लडका संतोष भी इसमें शामिल था. इसके बाद पंडितजी ने निम्नलिखित व्यवस्था दी-
-दस-पाँच लडका एक संतोस, गदहा मरले कबहूँ न दोस
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पृष्ठ 417, कहावत कोश, बिहार राष्ट्र भाषा परिषद

Friday, 18 January 2008

राजू श्रीवास्तव मस्त आदमी है!


मैंने जबसे राजू श्रीवास्तव को देखा है उन्हें मस्त आदमी पाया है। उनमें ख़ालिस देसी हास्य है जो हम अवधी और भोजपुरी ईथॉस वाले लोगों को बहुत अपील करता है. लीजिये एक बानगी-

Thursday, 17 January 2008


मालिक तूने गाड़ी बनाने वालों को

क्यों बना दिया


इन्होने गाड़ी चलाने वालों को


बेघर कर दिया

Tuesday, 15 January 2008

NACH BALLIYE!!


शरद ऋतू की मधुर सांझ है प्रिये आओ पाएं भंगडा /
ओये पेल्ले मैं मूड बना लां इक पेग्ग ला के तगड़ा !!
सदमा तो है मुझे भी , कि तुझसे जुदा हूं मैं
लेकिन ये सोचता हूं , अब भी गधा हूं मै

Monday, 14 January 2008

एक दोहा !!


सकल पदारथ है जग माहीं!

लऊके कुछ नहिं,चश्में चाहीं !!

Monk once more......

मानो ना मानो तुम कुछ भी कहो बिरादर / ब्रांड भतेरे हैं दारू के पर ओल्ड मंक है सबका फादर !!

Sunday, 13 January 2008

kaaliya ke sher!!

अध्धा तो है बगल में साकी ,बस जा लेआ कुछ नमकीन निवाला ,
तब तक मैं कह दूँ सबसे- '-बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला '!!!

Saturday, 12 January 2008

Jai Borchi Bhayya!!

चाहे चलें तेगतलवार या बजते हों खांडे,
मस्ती बनी रहे तुम्हारी भाई अशोक पांडे!

Wednesday, 9 January 2008

माल -ए -मुफ्त ,दिल -ए -बेरहम


सिरहाने मीर के न बातें करो लीगल और इल्लीगल की ,
के सूती है आज उसने एक अदद बोतल CHIVAS रीगल की !!

Tuesday, 8 January 2008

HIMALAYAN HANGOVER!!


रात में पहाड़ पर बहती रही शिवास रीगल की एक नदी ,
भुलाने को वो मंज़र चाहिए हमको एक सदी !!

Sunday, 6 January 2008

जन्नत के ख्वाब

सारी जवानी काट दी दुनिया की ऐश में /
जन्नत के ख्वाब देखे है बुड़्ढा पड़ा पड़ा //

Tuesday, 1 January 2008

MUBARAQBAAD

BANI RAHE YE SASTI MEHFIL, MAIKASH KAREN THHATH,
BHAIYON AUR LUGAIYON KO MUBARAQ-- YE DO HAZAAR AATH.