मैने आज ही ये सस्ती सी तुकबन्दी की लेकिन ये इतना छोटा सा शेर बना कि इसे पढ़वाने से पहले मुझे समझाना पड़ रहा है। आजकल मंहगाई कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है, दिन में आफिस जाओ तो गैस (पैट्रोल) का खर्च, दिन में ही दुकानें खुली रहती है इसलिये कभी ये लो कभी वो, अलग-अलग तरह के खर्च। रात होने पर इस तरह की चीजों की चिंता नही। इसलिये अर्ज किया है -
सस्ते शेर, सस्ती बातें
मंहगें दिन, सस्ती रातें।
इस शेर से पहले, मैं शब्दों के साथ कुछ और लिखने के लिये हाथापाई कर रहा था। थोड़ी सी धीकामुस्ती के बाद शब्दों को जब ठेला तो वो कुछ इस तरह से इकट्ठे हो गये (खाने की टेबल पर लेट पहुँचने वाले सभी मर्दों को समर्पित) -
तुस्सी ग्रेट हो जी,
कोरी एक स्लेट हो जी,
जल्दी से प्लेट लाओ
खाने में लेट हो जी।
Tuesday, 24 June 2008
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2 comments:
kaahe ki plate,
hum nahin great!
aap ho overweight,
mat khao bhar Pet.
:D
ओह, उलटी सलेट हो, जी?
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