Wednesday, 30 July 2008

श्वान हल्द्वानवी का बासी क़लाम

सायरी के अब्बू के अब्बू के अब्बू ... उर्फ़ कुमाऊंनी ज़ुबान में खुड़बुबू होते थे मरहूम मीर बाबा. आज देखिये हल्द्वानी का श्वान उनके दर पे क्या फैला आया. तमाम माफ़ीनामों के साथ पारी डिक्लेयर करते हुए कि ये लास्ट मुआफ़ीनामा ख़ुदा-ए-सुख़न के दर पे कह चुकने के बाद आज से किसी शायर-ओ-फ़ायर से न माफ़ी मांगूंगा न हाय अथवा बाय कहूंगा. सस्ता हूं सो सस्ता रहूंगा.

हम हुए, तुम हुए कि श्वान हुए
सस्ता कहने को ग़ज़लख़्वान हुए

-श्वान हल्द्वानवी

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