Saturday 26 July 2008

बम रहने दे!

पोपुलर मेरठी की कलम से-

मैं हूँ जिस हाल में ऐ मेरे सनम रहने दे
तेग़ मत दे मेरे हाथों में क़लम रहने दे
मैं तो शायर हूँ मेरा दिल है बहोत ही नाज़ुक
मैं पटाके ही से मर जाऊँगा, बम रहने दे

महबूब वादा कर के भी आया न दोस्तो
क्या क्या किया न हम ने यहाँ उस के प्यार में
मुर्ग़े चुरा के लाये थे जो चार "पोपुलर""
दो आरज़ू में कट गये, दो इन्तज़ार में"

और एक मुर्गे की कहानी-

जिस दिन हुआ पठान के मुर्ग़े का इन्तक़ाल,
दावत की मौलवी की तब आया उसे ख़याल,
मुर्दार मुर्ग़ की हुई मुल्लाह को जब ख़बर,
सारा बदन सुलग उठा, ग़ालिब हुआ जलाल,
कहने लगे खिलाओगे नरम गोश्त?
तुम को नहीं ज़रा भी शरियत का कुछ ख़याल
मुर्दार ग़ोश्त तो शरियत में है हराम,
जब तक न ज़िबाह कीजिये, होता नहीं हलाल,
फ़तवा जब अपना मौलवी साहब सुना चुके,
झुन्झला के ख़न ने किया तब उन से ये सवाल,
कैसी है आप की ये शरियत बताईये,
बंदे को कर दिया है ख़ुदा से भी बा-कमाल,
अल्लाह जिस को मार दे, हो जाये वो हराम,
बन्दे के हाथ जो मरे, हो जाये वो हलाल...

4 comments:

Ashok Pande said...

भई बहुत अच्छे. अर्से बाद कुछ ज़बरदस्त माल उतरा है सस्तों के आंगन में. नसीब खुले हुज़ूर. शुक्रिया इन लाजवाब चीज़ों के लिए.

दीपक said...

हा हा बहुत अच्छा !!गजब के नगीने है आप रितेश जी अल्ला ताला ए ये इल्तजा है कि ऐसी ही महफ़ील सजती रहे !!

अनूप भार्गव said...

बढिया है ऋतेश भाई लेकिन अगर मेरा खयाल सही है तो दूसरी नज़्म (मुर्गे की कहानी) पोपुलर मेरठी जी की नहीं बल्कि ’गिरगिट अहमदाबादी’ जी की है) । खैर हमे तो मौज़ लेने से मतलब है ...:-)
अच्छा माल है ।

Smart Indian said...

"अल्लाह जिस को मार दे, हो जाये वो हराम,
बन्दे के हाथ जो मरे, हो जाये वो हलाल..."
excellent!