बुफ़े-दावत पे बुलाया गया हूँ,
प्लेटें दे के बहलाया गया हूँ,
न आई पर न आई मेरी बारी,
पुलाव तक बहुत आया-गया हूँ,
कबाब की रकाबी ढून्ढने को,
कई मीलों में दौड़ाया गया हूँ,
ज़ियाफ़त के बहाने दर-हक़ीक़त,
मशक़्क़त के लिये लाया गया हूँ...
Saturday, 2 August 2008
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4 comments:
ha ha ha......... ye kya likh diya. aap to kuch khaa nahi paye hai. hamare muha me bhi pani aa gaya hai.
bhut badhiya davat hai. pani aa rha hai muha me.
भूखा-ऐ-वारदात पर - पेट की गुड़गुड़ की सस्ती कसम - " हैगी दावत की भूख ना जी / मैं तो शेरों से खाया गया हूँ " [:-)]- मनीष
बहुत खूब....
अकबर इलाहाबादी साहब ने तो महंगे शेर ही लिखे थे तब भी। आज सस्ते शेर में ठौर पा रहे हैं :)
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