Tuesday, 19 August 2008

तेरी गली में....

ये संदेश उन सब के नाम जो अब तक नहीं पटीं,और आगे पटने की संभावना भी नगण्य है :-)

इतने पड़े डंडे अबकी तेरी गली में,
अरमाँ हो गये सब ठंडे तेरी गली में,

हाथ में कंघी है,ज़ुल्फ़ें सँवारते हैं,
गड़ेंगे आशिक़ी के झंडे तेरी गली में,

अब क्या बताएँ ज़ालिम कैसे गुज़रते हैं,
संडे तेरी गली में, मंडे तेरी गली में,

हम ढूंढ लेंगे कोई दीदार का बहाना,
हम बेचा करेंगे अंडे तेरी गली में...

1 comment:

विनय (Viney) said...

कमाल कर दिया ऋतेश| हम सस्ते आशिकों के ग़ालिब तुम ही हो-

प्रेमिका के पड़े रस्ते रहो,
पिटो! फिर भी हँसते रहो,
तुम सस्ते हो और सस्ते रहो,
औरों को भी देंगे, ये फंडे तेरी गली में|