जिस शख्स को ऊपर से कमाई नहीं होती,
सोसाइटी उस की कभी हाई नहीं होती,
करती है वो उसी रोज़ शापिंग का तक़ाज़ा,
जिस रोज़ मेरी ज़ेब में पाई नहीं होती,
पुलिस करा लाती है हर चीज़ बरामद,
उस से भी के जिस ने चुराई नहीं होती,
मक्कारी-ओ-दगा आम है पर इस के अलावा,
सस्ते शायर में कोइ भी बुराई नहीं होती :)
4 comments:
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।
बहुत अच्छे !
एक शेर जोड़ने की ज़ुर्रत कर रहा हूँ ---
पैराहन चाक है और दर्जी का ये कहना है
ऐसे फ़टे कुर्ते की अब सिलाई नहीं होती ।
@शोभा जी,
मैनें अभी तक जो भी पोस्ट किया है,सब पढा-पढाया,सुना-सुनाया ही है.जब ये स्टाक खत्म हो जायेगा तो अपना लिखा पोस्ट करना शुरु करूँगा ः)
Theek kaha. Bahut badhiya...banaye rakhiye.
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