Monday, 1 September 2008

वो बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है!

(1)
हज अदा करने गया कौम का लीडर,
संगबारी के लिये शैतान् तक जाना पड़ा,
एक कंकड़ फेंकने पर ये सदा आई उसे,
तुम तो अपने आदमी थे तुमको आखिर क्या हुआ?

(2)
पीटा है तेरे बाप ने कुछ इस तरंग से,
टीसें सी उठ रही हैं मेरे अंग अंग से,
फ़रियाद करने पे मेरे कुछ इस तरह कहा,
गिरते हैं शह-सवार ही मैदान-ए-जंग में!

(3)
इंडस्ट्रियाँ सारी मेरे यार खा गये,
मेरी सारी जायदाद रिश्तेदार खा गये,
मेरे मरने के बाद भी की उन्होंने बेईमानी,
बनाई मज़ार तो मीनार खा गये!

(4)
कब से परदेस में हैं घर की नहीं ली सुध भी,
एक बच्चे की खबर आज भी यार आई है,
उनको परदेस में क़ुदरत ने ये बख्शी इज़्ज़त,
वो बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है!

5 comments:

रंजन (Ranjan) said...

पीटा है तेरे बाप ने कुछ इस तरंग से,
टीसें सी उठ रही हैं मेरे अंग अंग से,
फ़रियाद करने पे मेरे कुछ इस तरह कहा,
गिरते हैं शह-सवार ही मैदान-ए-जंग में!

बढिया

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

wah mazaa aa gaya

शोभा said...

सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

राज भाटिय़ा said...

हज अदा करने गया कौम का लीडर,
संगबारी के लिये शैतान् तक जाना पड़ा,
एक कंकड़ फेंकने पर ये सदा आई उसे,
तुम तो अपने आदमी थे तुमको आखिर क्या हुआ?
अजी आप इसे सस्ता शेर कहते हे??? बहुत ही गहरी सोच लिये हे यह आप का शॆर वाह क्या बात हे शेतान भी बोल उठा भाई तुम तो ....
धन्यवाद

राज भाटिय़ा said...

भाई यह शेर मे उठा के ले जा रहा हू, माफ़ करना