यूँ भी नहीं कि उदू से अदावत नहीं रही,
हाथों में लड़ने-भिड़ने की ताकत नहीं रही,
थाने कि एक पिटाई ने सन्जीदा कर दिया,
जलवों से छेड़छाड़ की आदत नहीं रही,
हमको वतन से दूर किया रोज़गार ने,
दामने-यार से कोई निस्बत नहीं रही,
पानी नहीं है घर में कई दिन से ऐ खुदा,
आईना देखने की भी हिम्मत नहीं रही,
मजबूर कर दिया है गरीबी ने इस क़दर,
सिगरेट-ओ-पान की कोई आदत नहीं रही,
होते हैं सामयीन तो मुश्किल से दस्तयाब,
पर शायरों की शहर में किल्लत नहीं रही,
ऊल्लू हमारे पहले से सीधे हैं "माहताब" ,
ऊल्लू को सीधा करने की ज़हमत नहीं रही...
Saturday, 6 September 2008
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1 comment:
अरे भाई बडी दुखी आत्मा लगती हे,
इतना कुछ होने पर भी...
शॆर कहने की आदत नही गई
धन्यवाद
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