Thursday, 25 September 2008

नक़्श फ़रियादी है किसकी शोखी-ए-तहरीर का...

आशिक़ी इक मारिका है परतवे-तदबीर का,
देग चूल्हे पे चढा है मार है कफ़गीर का,

उनके डैडी ने भी आखिर फ़ैसला कर ही दिया,
मेरे उनके दरमियाँ दीवार की तामीर का,

मुस्करा कर ही फेर देते हैं गले पर छुरी,
नाम तक लेते नहीं हैं तस्मिया तक्बीर का,

उनके भाई माहिर-ए-जूडो कराटे हो गये,
आशिक़ी अब हश्र क्या होगा तेरी तदबीर का,

शायरी करते हैं लेकिन बहर् से हैं दूर दूर,
एक मिसरा तीर का तो दूसरा है मीर का,

चार टुकडों के लिये हम घर से बेघर हो गये,
नक़्श फ़रियादी है किसकी शोखी-ए-तहरीर का,

उनके दूल्हे से भी हम ने दोस्ती कर ली मगर,
फ़ायदा कुछ भी हुआ न हम को इस तदबीर का..

4 comments:

manvinder bhimber said...

आशिक़ी इक मारिका है परतवे-तदबीर का,
देग चूल्हे पे चढा है मार है कफ़गीर का,

khoosurat

ALOK PURANIK said...

क्या केने क्या केने

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

उनके दूल्हे से भी हम ने दोस्ती कर ली मगर,
फ़ायदा कुछ भी हुआ न हम को इस तदबीर का..
लगे रहिए, लगे रहिए. एक ही दिन में सारा फायदा क्यों पा लेना चाहते हैं.

अनूप भार्गव said...

थोड़ी उर्दु मंहगी लगी पर फ़िर भी वाह, वाह ! !

अर्ज़ किया है :
तेरी शादी हो गई, बच्चे भी तेरे हो गये
क्या करूँगा पास जो रखी तेरी तसवीर का