Wednesday, 1 October 2008

तुम्हारी भूख की खातिर मुझी पर क्यूँ अजाब आये?









तू पापी है तेरी ख्वाहिश है दामन में सवाब आये,
मगर कहता है दिल तेरा बेहिजाबी बेहिजाब आये,

फ़िट्टे उस मुँह से लेता है मेरी बेटी का तू जो नाम,
दुआ है खाक उस मुँह में तेरे भी बेहिसाब आये,

हिफ़ाज़त अब मेरे ईमान की मालिक ही करे लोगों!,
की फ़रमाइश थी ज़मज़म की वो लेकर के शराब आये,

मना कितना किया मैने कहाँ सुनते ससुर जी हैं,
जमीं पर गंद फैली थी पर वो पहने जुराब आये,
 
न जाने कौन सी आंटी ने इनको आँख मारी है,
कि पीरी में भी बुड्ढे पर बहार आये शबाब आये,
 
जो सर अपना झुकाये है, कहे रोकर वही गंजा,
शराफ़त है कहाँ की ये कि तोहफ़े में खिजाब आये,
 
मुझे खाओ नहीं पका के मैं हूँ मजलूम सा पंछी,
तुम्हारी भूख की खातिर मुझी पर क्यूँ अजाब आये? 

मेरे दुशमन की हर मुर्गी ने सोने के दिये अंडे,
मेरी मुर्गी से आये जो सभी अंडे खराब आये, 
 
गरीबी का ये आलम है के सब्ज़ी पर गुज़ारा है,
तेरी किस्मत में ऐ "सस्ते" न जाने कब क़बाब आये...


(चित्र "PETA" से साभार)

1 comment:

दीपक said...

वाह भ‍इ वाह !!वाह भ‍इ वाह