दुआ करने गये किस्मत के मारे,
हुए मस्जिद से गुम जूते हमारे,
अमीरे-शहर की बेटी है कानी,
हुए दामाद के वारे-न्यारे,
वतन वापस आकर भी क्या मिला है,
वही खट्टी कढी औ बैंगन बघारे,
हर एक डरने लगा बीवी से अपनी,
मुक़द्दर किसके अब कौन सँवारे,
खुली जो आखँ तो कुछ भी नहीं था,
ना काज़ी, ना मैं, ना ही छुहारे...
4 comments:
bahut khoob anand aa gaya. likhate rahiye. dhanyawad.
achcha swapn tha
वाह क्या बात है। बढ़िया ।
to janab yaha time laga rahe hai isliye kahun ke usme koi ghazal post ku nahi ho rahi hai time pe ... wese ye bahot hi khub hai shandar....
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