Tuesday 18 September 2007

अनामदास की सस्ती पाती

अनामदास सस्ते शेरों को पढ़कर थोड़े प्रेरित हुए और उन्होंने विमलभाई के नाम ख़त लिखते हुए कुछ शेर भेजे हैं. अनामदासजी की मेल को स्वतंत्र पोस्ट के रूप में प्रकाशित कर रहा हूं ताकि बात सस्ते संदर्भ में ही रहे.

इरफ़ान

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विमल भाई
बड़ी मेहनत से आपके लिए ये अनमोल मोती जुटाए हैं, ज्यादातर दिल्ली की ब्लूलाइन बसों से साभार हैं, कुछ का स्रोत याद नहीं. हाँ, रंगीन स्टिकरों पर बड़े प्यार से सजाकर लिखे जाते हैं.

मालिक मेहरबान है, मगर चमचों से परेशान है...टाइप ही नहीं, इश्क़, बेवफ़ाई वग़ैरह पर जो शेर होते हैं, उनका उद्देश्य यही होता है कि सबको समझ में आ जाए, कोई बात बाक़ी न रह जाए.

अच्छा सिला दिया तो मेरे प्यार का, यार ने ही लूट लिया घर यार का इसीलिए तो बस ड्राइवरों के बीच इतना लोकप्रिय हुआ था.


लिखता हूँ ख़त ख़ून से स्याही न समझना
जानेमन हवालदार हूँ सिपाही न समझना

वक़्त बुरा है शायद ये भी टल जाएगा
तुम साथ दो वर्ना दम निकल जाएगा

आजकल तेरी चिट्ठी नहीं आती क्या हो गया
डाकिया मर गया कि डाकखाना बंद हो गया

निकले थे घर से सजके तेरे दीदार को
गेट बंद है तेरा तकते हैं दीवार को

हो गई बस्ती पूरी की पूरी ख़ाली
अकेले कैसे गाए कोई कव्वाली

न तुम बेवफ़ा थे न हम बेवफ़ा थे
क़िस्मत के सितारे दोनों से ख़फ़ा थे

उसने कभी देखा था मुझे बड़े प्यार से
मैंने देखा उसे गले मिलते मेरे यार से

साभारः दिल्ली के बस ड्राइवर और कंडक्टर

अनामदास द्वारा प्रेषित

3 comments:

Yunus Khan said...

वाह अनामदास जी
वाह इरफान जी
और वाह विमल जी ।
तीन वाह वाह हो गयी ।

VIMAL VERMA said...

किसे कहते हैं वाह वाह ?
इसे कहते है वाह वाह !


अनामदास जी की याददाश्त नवाजिश करम शुक्रिया मेहरबानी!! क्या बात है, ज़रा ट्र्क के पीछे लिखे शेर पर भी शोध किया जाय,

सस्ते शेर के टीम मेम्बरान!!! मज़ा आ रहा है लगे रहिये>>

Udan Tashtari said...

इसे तीन टिप्पणी गिना जाये: वाह वाह वाह-तीन लोगों के लिये. :)