Friday, 21 September 2007

कहीं दूर जब दिन ढल जाये


कहीं दूर जब दिन ढल जाये..
कहीं दूर जब दिन ढल जाये...
तो लोग लाइट जला लेते हैं.







3 comments:

VIMAL VERMA said...

जब रात होती है
जब रात होती है.....
हम चादर ओढ के सो जाते हैं
और जब सुबह होती है
और जब सुबह होती है
तो हम बत्ती बुझाकर
सवेरे का स्वागत करते हैं
अरे ये तो शेर टाइप हो गया.
मतलब मैं शायर तो नहीं?

Unknown said...

लाइट आने से जो आती है रौशनी ,वो समझते हैं की रौशनी आ गयी

इरफ़ान said...

सईद साहब!
आप सस्ता शेर के क़ाबिल शायर हैं.अपना ईमेल का पता भेजें ताकि आपको दावतनामा भेज सकूं.