मित्रो, मीटर वाली बात कह कर मैं फंस गया हूं. कृपया और अधिक सुझाव न भेजें. अशोक पांडे वो नहीं हैं जो हम समझ बैठे हैं. खुद उन्हीं से उधार लें -- बखत बखत की बात है मुरगी मारे लात है.
दोस्तो, ये तो आप महसूस करते ही होंगे कि शायरी की एक दुनिया वह भी है जिसे शायरी में कोई इज़्ज़त हासिल नहीं है. ये अलग बात है कि इसी दुनिया से मिले कच्चे माल पर ही "शायरी" का आलीशान महल खड़ा होता है, हुआ है और होता रहेगा. तो...यह ब्लॉग ज़मीन पर पनपती और परवान चढ़ती इसी शायरी को Dedicated है. मुझे मालूम है कि आप इस शायरी के मद्दाह हैं और आप ही इस शायरी के महीन तारों की झंकार को सुनने के कान रखते हैं. कोई भी शेर इतना सस्ता नहीं होता कि वो ज़िंदगी की हलचलों की तर्जुमानी न कर सके. बरसों पहले मैंने इलाहाबाद से प्रतापगढ़ जा रही बस में पिछली सीट पर बैठे एक मुसाफ़िर से ऐसा ही एक शेर सुना था जो हमारी ओरल हिस्ट्री का हिस्सा है और जिसके बग़ैर हमारे हिंदी इलाक़े का साहित्यिक इतिहास और अभिव्यक्तियों की देसी अदाएं बयान नहीं की जा सकतीं. शेर था-- बल्कि है--- वो उल्लू थे जो अंडे दे गये हैं, ये पट्ठे हैं जो अंडे से रहे हैं . .............इस शेर के आख़ीर में बस उन लोगॊं के लिये एक फ़िकरा ही रह जाता है जो औपनिवेशिक ग़ुलामी और चाटुकारिता की नुमाइंदगी कर रहे हैं यानी उल्लू के पट्ठे. --------तो, आइये और बनिये सस्ता शेर के हमराही. मैं इस पोस्ट का समापन एक अन्य शेर से करता हूं ताकि आपका हौसला बना रहे और आप सस्ते शेर के हमारे अपर और लोवर क्राईटेरिया को भांप सकें. पानी गिरता है पहाड़ से दीवार से नहीं, दोस्ती मुझसे है मेरे रोजगार से नहीं. --------------------------------------------- वैधानिक चेतावनी:इस महफ़िल में आनेवाले शेर, ज़रूरी नहीं हैं कि हरकारों के अपने शेर हों. पढ़ने-सुननेवाले इन्हें पढ़ा-पढ़ाया या सुना-सुनाया भी मानें. -------------------- इरफ़ान 12 सितंबर, 2007
सात सस्ते शेर इस महफ़िल में भेजने के बाद आपको मौक़ा दिया जायेगा कि आप एक लतीफ़ा भेज दें. तो देर किस बात की ? आपके पास भी है एक सस्ता शेर... वो आपका है या आपने किसी से सुना इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. बस मुस्कुराइये और लिख भेजिये हमें ramrotiaaloo@gmail.com पर और बनिये महफ़िल के सितारे.
12 comments:
chaarpaaee kaa meter thoda sa theek kar dein to yah sher deewaan kaa hissaa hone ka haq rakhta hai. jame raho.jay borchi.
*तो यूं कर दें इरफान? :
वो आगे आगे वस्ल का वादा किये हुए
हम काँधों पे, पीछे भगें खटिया लिए हुए
हां, अब बात और भाषा में सामंजस्य हो गया है। मीटर की बात तो इरफान ही बताऐंगे।
इक हमरौ सुझाओ:
वो आगे आगे वस्ल का वादा किये हुए
पीछे पीछे हम चलें चारपाई लिए हुए
कुछ ऐसा कर सकते हैं
वो आगे आगे वस्ल का वादा किये हुए
हम पीछे चारपाई को सर पर लिये हुए
यारो, बस ज़रा एक बार और थोडा ज़ोर लग जाये, तो इरफान की बात भी रह जाये, मेर अरमान भी निकल जाये। प्लीज़, प्लीज़ ... पिलीज
मित्रो, मीटर वाली बात कह कर मैं फंस गया हूं. कृपया और अधिक सुझाव न भेजें. अशोक पांडे वो नहीं हैं जो हम समझ बैठे हैं. खुद उन्हीं से उधार लें --
बखत बखत की बात है
मुरगी मारे लात है.
क्षमा प्रभु.
क्या गुरु, ऐसी क्या जबरजस्ती है और ऎसी क्या फंसान। मुझे वाकई शिद्दत से इंतज़ार है सही मीटर का। जे बोर्ची बाबा की। क्षमा मुझे दीजे प्रभु जी!
वो आगे-आगे वस्ल का वादा किए हुए
हम पीछे-पीछे हाथ में चद्दर लिए हुए।
कैसा रहेगा? चारपाई की जिद कुछ ज्यादा ही कुलीनतावादी लगती है। सिर्फ चद्दर बिछ जाए तो भी क्या कम आनंद है!
द फस्ट पराइज गोज टू: चंदू रद्दीवाला फिराम दिल्ली। थैंक यू चंदू भाई। इरफान तो डरा के निकल गए।
aji chaddar bhi kaun jaroori hai . Bus vo vaada kiye hue aur hum irada liye hue. kyun?
चद्दर ठीक है, इरादा हाथ में जमा नहीं, पर हाथ में कुछ और आ जाये (समझ गये ना) इससे अच्छा है।
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