Monday, 30 June 2008
एक बत्तखिया शेर !
अमा दीपक बाबू हम बराबर आपके आस पास हैं मगर बत्तख्बाज़ि में कुछ यूँ उलझे रहे के यहाँ लिखना न हो सका । बहरहाल , कुछ हज़रात आजकल हारमोनियम के साथ ऊपर वाले को टेर रहे हैं और इश्क हकीकी (नुक्ता चीं न करो फोनेटिक टाइप की दुनिया में ) में मसरूफ हैं और दुनियावी मोहब्बत याने जिसे इश्क मजाज़ी कहा गया है ,में मुब्तला हज़रात की भी कमी नहीं मग़र अपनी राह तो फ़क़त ये है , मुलाहिज़ा फरमाएं :
न इश्क हकीकी से और न मजाज़ी से
हमें सरोकार ऐ रिंद फ़क़त बत्तख्बाज़ि से
न इश्क हकीकी से और न मजाज़ी से
हमें सरोकार ऐ रिंद फ़क़त बत्तख्बाज़ि से
Saturday, 28 June 2008
मुनीश जी कहा है
साहिबान, कदरदान, मेहरबान पिछले कुछ दिनो से सस्ते शेर का जंगल "सतपुडा के उंघते अनमने जंगल" हो गया है .आप सबो की नजरे इनायत लाजिम है । मै एक शेर पढता हु माहौल बनाने के लिये फ़िर उसमे असली रंग तो अनुप जी ही भरेंगे हमेशा की तरह ॥तो मै शेर पढता हु ,हँसना है या रोना है ये साहिबान तय करे साथ ही ये आशा भी करता हु कि आप जरुर आयेंगे और अगर नही आयेंगे तो ये बताने आयेंगे कि आप नही आयेंगे ॥
मेरे दील के अरमा आँसुओ मे बह गये ॥
हम गली मे थे गली मे रह गये
कमबख्त लाइट चली गयी वक्त पे
जो बात उनसे कहनी थी उनकी मम्मी से कह गये॥
मेरे दील के अरमा आँसुओ मे बह गये ॥
हम गली मे थे गली मे रह गये
कमबख्त लाइट चली गयी वक्त पे
जो बात उनसे कहनी थी उनकी मम्मी से कह गये॥
Friday, 27 June 2008
पेश-ऍ-खिदमत है सास-बहू वाला शेर-

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&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& अब लीजिये...
सुना है सास को आज इक बहू ने पीट दिया
तो इस खबर पे ये हंगामा चारसू क्या है
मियाँ से लड़ने झगड़ने के हम नहीं क़ाइल
जो सास को ही न ठोके तो फिर बहू क्या है।
(शायर: दिलावर फ़िगार)
Wednesday, 25 June 2008
छोटी सी ये सीख
गर होना है प्यारे दुनिया मे प्रसिद्ध ॥
गाठबांध ले अपनी छोटी सी ये सीख ॥
हाथी पर शिर्षासन लगा और फ़ोटो खींचा ।
उस फ़ोटो को उल्टा कर और दुनिया को दिखा ॥
गाठबांध ले अपनी छोटी सी ये सीख ॥
हाथी पर शिर्षासन लगा और फ़ोटो खींचा ।
उस फ़ोटो को उल्टा कर और दुनिया को दिखा ॥
Tuesday, 24 June 2008
सस्ती रातें
मैने आज ही ये सस्ती सी तुकबन्दी की लेकिन ये इतना छोटा सा शेर बना कि इसे पढ़वाने से पहले मुझे समझाना पड़ रहा है। आजकल मंहगाई कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है, दिन में आफिस जाओ तो गैस (पैट्रोल) का खर्च, दिन में ही दुकानें खुली रहती है इसलिये कभी ये लो कभी वो, अलग-अलग तरह के खर्च। रात होने पर इस तरह की चीजों की चिंता नही। इसलिये अर्ज किया है -
सस्ते शेर, सस्ती बातें
मंहगें दिन, सस्ती रातें।
इस शेर से पहले, मैं शब्दों के साथ कुछ और लिखने के लिये हाथापाई कर रहा था। थोड़ी सी धीकामुस्ती के बाद शब्दों को जब ठेला तो वो कुछ इस तरह से इकट्ठे हो गये (खाने की टेबल पर लेट पहुँचने वाले सभी मर्दों को समर्पित) -
तुस्सी ग्रेट हो जी,
कोरी एक स्लेट हो जी,
जल्दी से प्लेट लाओ
खाने में लेट हो जी।
सस्ते शेर, सस्ती बातें
मंहगें दिन, सस्ती रातें।
इस शेर से पहले, मैं शब्दों के साथ कुछ और लिखने के लिये हाथापाई कर रहा था। थोड़ी सी धीकामुस्ती के बाद शब्दों को जब ठेला तो वो कुछ इस तरह से इकट्ठे हो गये (खाने की टेबल पर लेट पहुँचने वाले सभी मर्दों को समर्पित) -
तुस्सी ग्रेट हो जी,
कोरी एक स्लेट हो जी,
जल्दी से प्लेट लाओ
खाने में लेट हो जी।
Sunday, 22 June 2008
पेले खिदमत है एक उड़ाया हुआ सस्ता शेर
पेले खिदमत है एक उड़ाया हुआ सस्ता शेर
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माथे पे पसीना था सिर पे रेत था
'डार्लिंग' ने फूल फेका गमले समेत था
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माथे पे पसीना था सिर पे रेत था
'डार्लिंग' ने फूल फेका गमले समेत था
Friday, 20 June 2008
चंद शब्द चुनकर लाया हूँ
सस्ते शेर के सस्ते श्रोताओं को एक सस्ता सा सलाम, इस कलाम की कहानी कुछ वैसी ही है जैसी 'तिल बना रहे थे, स्याही फैल गयी' की। मुलाहयजा फरमायें -
शेर तुम, गजल तुम, गीत और कविता भी तुम
चंद शब्द चुनके लाया था, जाने कहाँ वो हो गये गुम।
कोई आंखों पे गुनगुनाता है, कोई मंदिर में जा सुनाता है
'तरूण' ये सुखनवरों की बस्ती है, यहाँ हर शब्द दिल को भाता है।
चलो तुम मीर बन जाओ, गालिब का तख्ल्लुस मैं ले लूँ
शब्दों के फूल तुम चुनो, और मैं उन से माला बुन लूँ।
ऊपर की इन लाईनों को आज छापने से पहले थोड़ा दुरस्त किया गया है, वैसे ये कई हफ्तों से किसी लावारिस पेपर में लिखी घर के किसी कोने में पड़ी थी, आज नजर गयी तो जैसे इनको भी इनका खोया चांद मिल गया। दुरस्त करने से पहले का ड्राफ्ट वर्जन कुछ ऐसे था -
शेर तुम, गजल तुम, गीत और कविता भी तुम
बहुतों ने करी कोशिश, सीधी ना कर पाये कुत्ते की दुम।
कोई आंखों पे गुनगुनाता है, कोई मंदिर में जा सुनाता है
'तरूण' ये सुखनवरों की बस्ती है, आ तू भी अपना आशियाँ यहाँ बुन।
चलो तुम मीर बन जाओ, गालिब का तख्ल्लुस मैं ले लूँ
सस्ते शेरों की ये दुनिया सही, यहाँ शायर कभी नही होते गुम।
शेर तुम, गजल तुम, गीत और कविता भी तुम
चंद शब्द चुनके लाया था, जाने कहाँ वो हो गये गुम।
कोई आंखों पे गुनगुनाता है, कोई मंदिर में जा सुनाता है
'तरूण' ये सुखनवरों की बस्ती है, यहाँ हर शब्द दिल को भाता है।
चलो तुम मीर बन जाओ, गालिब का तख्ल्लुस मैं ले लूँ
शब्दों के फूल तुम चुनो, और मैं उन से माला बुन लूँ।
ऊपर की इन लाईनों को आज छापने से पहले थोड़ा दुरस्त किया गया है, वैसे ये कई हफ्तों से किसी लावारिस पेपर में लिखी घर के किसी कोने में पड़ी थी, आज नजर गयी तो जैसे इनको भी इनका खोया चांद मिल गया। दुरस्त करने से पहले का ड्राफ्ट वर्जन कुछ ऐसे था -
शेर तुम, गजल तुम, गीत और कविता भी तुम
बहुतों ने करी कोशिश, सीधी ना कर पाये कुत्ते की दुम।
कोई आंखों पे गुनगुनाता है, कोई मंदिर में जा सुनाता है
'तरूण' ये सुखनवरों की बस्ती है, आ तू भी अपना आशियाँ यहाँ बुन।
चलो तुम मीर बन जाओ, गालिब का तख्ल्लुस मैं ले लूँ
सस्ते शेरों की ये दुनिया सही, यहाँ शायर कभी नही होते गुम।
Wednesday, 18 June 2008
कर दिया इज़हार-ए-इश्क
Monday, 16 June 2008
zaraa gaur farmaaye.n
arz hai
ikhattar bahattar tihattar chauhattar
ikhattar bahattar tihattar chauhattar
pichahattar chhiyattar satattar athattar
ikhattar bahattar tihattar chauhattar
ikhattar bahattar tihattar chauhattar
pichahattar chhiyattar satattar athattar
Thursday, 12 June 2008
ग़ालिब का एक अवधी अनुवाद
नक़्श फ़रियादी है किसकी शोख़ी-ए-तहरीर का,
काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए-तस्वीर का .
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इसे अवधी में पढिये-
वस्तर पहिरे कागद केरा, चित्र एक-एक चिल्लाय,
कवने ठगवा अपनी कलम से हमको अइसन दियो बनाय
काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए-तस्वीर का .
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इसे अवधी में पढिये-
वस्तर पहिरे कागद केरा, चित्र एक-एक चिल्लाय,
कवने ठगवा अपनी कलम से हमको अइसन दियो बनाय
जूते उतार के .....
अभी हाल ही में एक मंदिर में सम्पन्न हुए कवि सम्मेलन के दौरान जन्मा ये शेर हाज़िर है :
आलू, अंडे और टमाटर की बौछार के बाद
हमारे कवि मित्र सुरक्षा का आभास पाते हैं,
मंदिर में होने वाले कवि सम्मेलन में
श्रोता जूते उतार के आते हैं ।
आलू, अंडे और टमाटर की बौछार के बाद
हमारे कवि मित्र सुरक्षा का आभास पाते हैं,
मंदिर में होने वाले कवि सम्मेलन में
श्रोता जूते उतार के आते हैं ।
Monday, 9 June 2008
अर्ज़ किया है......
वो मेहरबान भी हुए हमपे तो इस तरह.....
वो मेहरबान भी हुए हमपे तो इस तरह.....
मरहम लगाया ज़ख्म पर खंजर के नोक से
वो मेहरबान भी हुए हमपे तो इस तरह.....
मरहम लगाया ज़ख्म पर खंजर के नोक से
Sunday, 8 June 2008
कमबखत बादल छाए हैं

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आज बारिश का शेर ।।
वाह वाह भाय बादल छाए हैं ।
वाह वाह भाय बादल छाए हैं ।
वाह वाह भाय बादल छाए हैं ।
अबे चुप कमबखत चेक कर
हमने अपने छाते सिलवाए हैं ।
Saturday, 7 June 2008
जिन आंखों पर हैं आशिक
आंखें क्या-क्या न देखें और क्या-क्या न दिखायें
यहां तो बस पार उतरें वही जो इनमें डूब-डूब जायें
यहां तो बस पार उतरें वही जो इनमें डूब-डूब जायें

और इसके लिये डरना मना है
क्योंकि
इस बाबत एक नेक सलाह
अपने प्यारे बाबा मीर तकी़ 'मीर' दे गए हैं
आइए देखें-
क्योंकि
इस बाबत एक नेक सलाह
अपने प्यारे बाबा मीर तकी़ 'मीर' दे गए हैं
आइए देखें-
क्या घूरते हो हरदम डरते नहीं हैं कुछ हम
जिन आंखों पर हैं आशिक उन आंखों के दिखाये!
जिन आंखों पर हैं आशिक उन आंखों के दिखाये!
जुते खो गये
उन्होने फ़रमाया कि महफ़ील मे जुते खो गये अब घर कैसे जायेंगे ॥
हमने कहा आप शेर शुरु तो किजिये इतने बरसेंगे आप गिन नही पायेंगे ॥
हमने कहा आप शेर शुरु तो किजिये इतने बरसेंगे आप गिन नही पायेंगे ॥
'सस्ता शेर' की पिछली त्रिवेणी पढ़कर यह शेर-

इस प्रकार के शेरों का रचयिता शायद कोई व्यक्ति नहीं बल्कि समाज होता है और इससे उस समाज का इथोस झलकता है. मूल दोहा है- माटी कहे कुम्हार से... आप सब जानते ही हैं. अब इसे पढ़िये....-----------------------------
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कच्छा बोला धोबी से, तू क्यों पीटे मोहि
अगर कहीं मैं फट गया, पिटवाऊंगा तोहि.
Friday, 6 June 2008
SMS वाला शेल
एक दोस्त ने भेजा जब मैंने उसकी फ़ोन कॉल का जवाब नही दिया :-
पेले खिदमत है एक SMS वाला शेल
उनके लिए जब हमने भटकना छोड़ दिया,
याद में उनकी जब तडपना छोड़ दिया !!
वो रोये बहुत आ कर तब हमारे पास,
जब हमारे दिल ने धड़कना छोड़ दिया !!
पेले खिदमत है एक SMS वाला शेल
उनके लिए जब हमने भटकना छोड़ दिया,
याद में उनकी जब तडपना छोड़ दिया !!
वो रोये बहुत आ कर तब हमारे पास,
जब हमारे दिल ने धड़कना छोड़ दिया !!
या ले के जाओगे ...
सागर खैयामी साहब का एक नायाब कता ....
गौर फ़रमाइये ...
बोला दुकानदार कि क्या चाहिये तुम्हे
जो भी कहोगे मेरी दुकाँ पर वो पाओगे
मैनें कहा कि कुत्ते के खाने का केक है
बोला यहीं पे खाओगे या ले के जाओगे
Wednesday, 4 June 2008
नियम के प्याले टूट गये
आया कलयुग झूम के यारो ,नियम के प्याले टूट गये ॥
जो रिश्वत देते पकडे गये वो रिश्वत देके छूट गये ॥
Tuesday, 3 June 2008
बहुत ही सस्ता
बहुत ही सस्ता शेर .....किसी ट्रक के पीछे लिखा था
गाड़ी चलाने से पहले हैंडिल देख लेना
...
गाड़ी चलाने से पहले हैंडिल देख लेना
...
लड़की छेड़ने से पहले सैंडिल देख लेना
Monday, 2 June 2008
गोबर की गुणवत्ता
सस्ता शेर मंडली के द्वारा जनहित मे जारी .. आवश्यक सुचना

इस वर्ष बोर्ड के पेपर भैस ने खा लिये है अब विद्यार्थियो को गोबर की गुणवत्ता के आधार पे नंबर दिया जायेगा ..
और अंत मे एक सस्ता विज्ञापन ...
उसकी याद मे हम सारी-सारी रात पीते रहे
कलेजा फ़ट कर बाहर आ गया उसे दिन भर सीते रहे
(वर्तनी की गलती अशोक जी के निर्देशानुसार सुधारी गयी है )

इस वर्ष बोर्ड के पेपर भैस ने खा लिये है अब विद्यार्थियो को गोबर की गुणवत्ता के आधार पे नंबर दिया जायेगा ..
और अंत मे एक सस्ता विज्ञापन ...
उसकी याद मे हम सारी-सारी रात पीते रहे
कलेजा फ़ट कर बाहर आ गया उसे दिन भर सीते रहे
(वर्तनी की गलती अशोक जी के निर्देशानुसार सुधारी गयी है )
Sunday, 1 June 2008
मैंने कब तारीफ़ें की हैं, उनके बांके नैंनों की
सस्ता है या महंगा, साहेबान तय कर लें. अहमद नदीम क़ासमी साहब ने यूं भी फ़रमाया है एक जगह:
देख री, तू पनघट पै जाके मेरा ज़िक्र न छेड़ा कर
क्या मैं जानूं, कैसे हैं वो, किस कूचे में रहते हैं
मैंने कब तारीफ़ें की हैं, उनके बांके नैंनों की
"वो अच्छे ख़ुशपोश जवां हैं" मेरे भय्या कहते हैं
देख री, तू पनघट पै जाके मेरा ज़िक्र न छेड़ा कर
क्या मैं जानूं, कैसे हैं वो, किस कूचे में रहते हैं
मैंने कब तारीफ़ें की हैं, उनके बांके नैंनों की
"वो अच्छे ख़ुशपोश जवां हैं" मेरे भय्या कहते हैं
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