Tuesday, 8 July 2008

रदी शेर पर एक और ज़्यादा रद्दी शेर ...

अशोक पांडे की पंक्ति "हो सके तो हर जगह मुमताज बनाते चलो" से प्रेरित ..

शाहजहाँ से उन की बेगम नाराज लगती है
क्यों कि हर मोहतरमा उन्हें मुमताज़ लगती है।
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3 comments:

siddheshwar singh said...

बाबूजी, बहुत दिनों बाद कोई उम्दा 'सेर' मिला है.मजा आ गया.

Ashok Pande said...

मरहबा! मरहबा! इन्तकाल! इन्तकाल!

ghughutibasuti said...

:) बढ़िया है।
घुघूती बासूती