Friday, 11 July 2008

सस्ते शेर नहीं मिलते ....

पिछले कई दिनों से छाये सन्नाटे पर ...

राम खड़े हैं प्रतीक्षा में शबरी के बेर नहीं मिलते
इस मंहगाई के जमाने में सस्ते शेर नहीं मिलते ।

6 comments:

Ashok Pande said...

बखत खराब चल रिया सस्तों का! कोई बात नहीं साहब! आवेगा, अच्छा टैम भी आवेगा.

अच्छा है!

राज भाटिय़ा said...

अरे भईया महगाई के जमाने मे क्यो सस्ता शेर पढा कर महगें बालो के पेट पर लाट जमा रहे हो, कुछ तो रहम करो

Anonymous said...

वाह महोदय..., क्या खूब कही....आपकी रचना ने सुबह की ताजगी दुगुनी कर दी.... अगले पोस्ट की तीव्र प्रतीक्षा में..... धन्यवाद

अनूप भार्गव said...

सुक्रिया ! सुक्रिया !
धन्यबाद

दीपक said...

गुल गये गुलशन गया गुल के पत्ते रह गये !!
शेर सारे मर गये हम उल्लु के पठ्ठे रह गये !!

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

वाह-वाह!