Monday, 28 July 2008

जब से बेगम ने मुझे मुर्गा बना रक्खा है....

हक़ीम नासिर साहब से माफ़ी की गुज़ारिश के साथ,राम रोटी आलू के उन पाठकों को समर्पित,जो शादी-शुदा हैं (मैं छड़ा होने के नाते इस मज़े से नावाकिफ़ हूँ)-

जब से बेगम ने मुझे मुर्गा बना रक्खा है,
मैनें आँखों की तरह सर भी झुका रक्खा है,
बर्तनों आज मेरे सर पे बरसते क्यूँ हो,
मैनें तुमको तो हमेशा से धुला रक्खा है,
पहले बेलन ने बनाया था मेरे सर पे गूमड़,
और अब चिमटे ने मेरा गाल सजा रक्खा है,
खा जा इस मार को भी हँसकर प्यारे,
बेगम से पिटने में क़ुदरत ने मज़ा रक्खा है..

3 comments:

राज भाटिय़ा said...

अभी नयी नयी शादी हुई लगती हे, बधाई हो

शोभा said...

जब से बेगम ने मुझे मुर्गा बना रक्खा है,
मैनें आँखों की तरह सर भी झुका रक्खा है,
बर्तनों आज मेरे सर पे बरसते क्यूँ हो,
मैनें तुमको तो हमेशा से धुला रक्खा है,
पहले बेलन ने बनाया था मेरे सर पे गूमड़,
और अब चिमटे ने मेरा गाल सजा रक्खा है,
बहुत बढ़िया पैरोडी बनाई है। बधाई

अनूप भार्गव said...

वाह ! वाह !

ऊह .....