कल से दो दिन के लिये हैदराबाद जा रहा हूँ, चिरकिन मियाँ से मिलने, शाहिद कव्वाल से मिलने का भी प्रोग्राम है ( आप लोग शायद न जानते हों उन्हें, बहुत सस्ता लिखते हैं, पर तबीयत ज़रा रंगीन है, इसलिये उनके अशआर यहाँ नहीं लिख सकता) सोचा कोटा पूरा कर के जाऊँ। ये छप्पय देखिये...किस अलौकिक सौन्दर्य का वर्णन है-
एक नारी अपूरब देखि परी कटि है जेंहि की धमधूसर सी,
गज सुन्ड समान बने भुज हैं तामें अन्गुरी लगि मूसर सी,
प्रति अंग में रोम उगे तृन से अरु दीठी बिराजत ऊसर सी,
निसि भादव के सम केस खुले करिया मुख ताड़का दूसर सी..
Monday, 28 July 2008
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3 comments:
अजी कयो डरा रहे हो, नारिया तो पहले से ही आज कल सर पे चढ रही हे, ऊपर से इस भंयकर सौंदर्य वर्णन ! कही कल युग मे ताडका फ़िर से तो नही पेदा हो गई ?
कमाल कर दिया जी अपने तो. किसी ने ठीक ही कहा था - नायिका के भयानक सौन्दर्य को देखकर कुत्ते रोने लगे.
lagta hai NDTV imegin par ramayan dekh rahe hai, tabhi to rakshas ka varnan kar rahe hai.
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