Tuesday, 8 July 2008

तसव्वुरात की परछाइयां

मरहूम साहिर लुधियानवी और गुरुदत्त से दण्डवत क्षमायाचना के साथ



मैं धूल फ़ांक रहा हूं तुम्हारे कूचे में
तुम्हारी टांग मरम्मत से दुखती जाती है
न जाने आज तेरा बाप क्या करने वाला है
सुबह से टुन्न हूं लालटेन बुझती जाती है

2 comments:

अमिताभ मीत said...

वो तुझ को दूर ही से ताक रहा है पट्ठे
रख रहा धार है वो जम के अपने चक्कू पर
हलाल कर चुका है तीन को सवेरे से
कभी बकरे की तरह और कभी मुर्गे की तरह

Ashok Pande said...

इन्तकाल, अमिताभ भाई, इन्तकाल!