आज मुंशी मुनक़्क़ा साहब
पिछली ख़ता को माफ़ फ़रमाते हुए
अगला कता फ़रमाते हैं-
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मैं क्यों बनवाऊँ मोची से
ख़रीदूं क्यों मैं बाटा से
जुमा के दिन तो हर मसजिद में
हर कीमत का मिलता है.
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5 comments:
मूल्यवान यह सोच है मिल सब करें विचार।
इसे मानकर चल सकें सुखी रहे संसार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
badhiya hai.kab uthaya tha?
वाह
मुझे टेम्पो पर लिखा एक शेर याद आ गया
नेकी कर जूता खा
मैंने खाया तू भी खा
मैं क्यों बनवाऊँ मोची से
ख़रीदूं क्यों मैं बाटा से
नेता पहले ही डरे बैठे हैं
इस जूते के टाटा से.
दिल्ली मे मेरा जुता गुम हो गया था !! अब समझ गया ये तो अपने यार लोग के पास है !!:))
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