Thursday 11 October 2007

जमीलुद्दीन आली का एक और दोहा

बिस उगलें हैं जिनकी जबानें, सड़ गए जिन के नाम
आज भी जब हूँ बरसा बरसे, आय उन्हीं के काम.

No comments: