Tuesday, 30 October 2007

बंगाली उर्दू की सायरी

गीला कोरता हूँ ना शूखा कोरता हूँ
तुम शाला मोत रोहो ये ही दूआ कोरता हूँ।

(keywords: गीला, शूखा , शाला मोत, कोरता। थैँकू शर लोगो।

5 comments:

अजित वडनेरकर said...

बहुत खूब । मज़ा बाँध दिया आपने तो , समा आ गया। आमि तोमाके.....
शाला बोंगाली जानि ना

मुनीश ( munish ) said...

kya baat hai ji!! vah vah.

बालकिशन said...

एक अंग्रेज शायर ने भी उर्दू में कुछ इस तरह शायरी की :-
"बड़ा सज-धज के मेरा घड़ से मेरा जनाना निकला
पड़ वो नाही निकला जिसको लिए मेरा जनाना निकला.

VIMAL VERMA said...

एक शेर इसी के साथ का है........
जब मेरा जनाजा निकला तो उसके पीछे सारा जहां उमड़ पड़ा,
पर वो ना निकला जिसके पीछे मेरा जनाजा निकला
इसी शेर को किसी ने ऐसे पढ़ा....


जब मेरा जनाना निकला !
उसके पीछे सारा जहां उमड़ पड़ा !!
पर वो ना निकला जिसके पीछे !
मेरा जनाना निकला !!

बड़े दिनो बाद ये शेर आपके माध्यम से सुना.. मस्त है भाई बहुत खूब लगे रहें !!!

bijnior district said...

maja aa jaya