
चटनी के सैम बुधराम
विमल भाई ने आज ये दो गाने जारी कर के कमाल कर दिया. मेरे दिमाग़ में इस शाम बस यही बज रहे हैं.
मैंने सोचा कि ये दोनों गानें आप तक कम समय में और लड़ते हुए फट पहुंच जाएं.
तो लीजिये भाई रोहित की कारीगरी और मेरी बददिमाग़ी का लुत्फ़ उठाइये.
ये उलझे हुए शेर ख़ास तौर पर उन लोगों के लिये जिन्हें ठुमरी पर ये सुलझे गाने सुनने की तौफ़ीक़ न हुई.
सुलझाने के लिये यहां जाएं.
3 comments:
बहुत बढिया!
हे भगवान यह क्या कर दिया, आपने तो सचमुच की चटनी बनादी। :)
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
हलुवा बने या न बने, बोर्चीवाद के प्रणेता के रुप में अब आपका नाम गोबराक्षरों में अवश्य लिखा जाएगा। शानदार काम। बढ़िया क्रियेटिविटी। इस बात पर मेरी पूरी बिस्वास हो गई है। मूल पोस्ट भी ज़बर है।
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