Sunday, 4 November 2007

इक दिन


यारो इक दिन मौत जरूर ।
फिर क्यौं इतने गाफिल होकर बने नशे मे चूर ।
यही चुड़ैलें तुम्हे खायेंगी जिन्हें समझते हूर ।
माया मोह जाल की फांसी इससे भागो दूर ।
जान बूझकर धोखा खाना है यह कौन शऊर ।

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

इन से कहाँ भाग कर जाईएगा
जहाँ जाईएगाअ इन्हें पाइएगा।