Friday 23 November 2007

इक़्बाल और माजिद लाहौरी की रूह से माफ़ी के साथ


कमज़ोर मक़ाबल हो तो फ़ौलाद हे जरनील
अमरीकी हुं सरकार तो औलाद हे जरनील
क़मारी व ग़फ़ारी व क़दोसी व जबरोत
इस क़सम की हर क़ैद से आज़ाद हे जरनील
जरनील की आंखो में खटकती हे अदालत
हुं जज जो आज़ाद तो बरबाद हे जरनील
हर वक़्त वा पहने हे सदारत में भी वर्दी
बीवी भी उतरवाये तो नाशाद हे जरनील
दरानी व अफ़गन की क़सोरी व शजाएत
शीतान के इन, उन चीलयां का उस्ताद हे जरनील

2 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आपने एक नया प्रयास किया है। पर शायरी में प्रयुक्त फारसीमय होने के कारण शायरी का लुत्फ नहीं आया। भविष्य में यदि इस बात का ध्यान रखें, तो अच्छा रहेगा।

Ashok Pande said...

डाली बाबा की फोटू काहे लगा दी इरफान बाबू? इस से अच्छी मूंछ तो नत्थू लाल की हैं। बढ़िया है।