भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1850-1885)संभवत: हिन्दी के पहले पैरोडीकार हैं।उन्होंने नवाब वाजिद अली शाह `अख्तर` के नाटक `इन्दर सभा´ की पैरोडी `बन्दर सभा´ के नाम से लिखी थी ।इसी का एक टुकड़ा पेश है-
(आना शुतुरमुर्ग परी का बीच सभा के )
आज महफिल में शुतुरमुर्ग परी आती है।
गोया महमिल से व लैली उतरी आती है।
तैल ओ पानी से पट्टी है संवारी सिर पर
मुंह पै मांझा दिए जल्लादो जरी आती है।
झूठे पठ्ठे की है मूबाफ पड़ी चोटी में
देखते ही जिसे आंखों में तरी आती है।
पान भी खाया है मिस्सी भी जमाई हैगी
हाथ में पायंचा लेकर निखरी आती है।
मार सकते हैं परिन्दे भी नही पर जिस तक
चिड़या वाले के यहां अब व परी आती है।
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1 comment:
भई वाह आपने ऐतिहासिक सस्तों की याद ताज़ा करा दी. कमाल है.
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