मय्यत में गया पी के, शादी में गया पी के
दिल्ली गया तो पी के, घर लौट पहुँचा पी के
हुआ पोपुलर वो पी के, था नाम उस का पी के
पी के की वजह लोगो, यारों की बढ़ी जी के
उस पी के नाम शख्स का कल पढ़ के फ़ातेहा
हम घर की रहगुज़र थे कि घटा एक सानेहा
इक भूत मिला हाथ में पव्वा लिए कहता
कुछ भात दो और कुछ दो मुझे छोले कढ़ी पी के
(समस्त सस्ते शायर भाइयों से अपील है कि इन दो छंदों में मीटर की कमियाँ दूर करें और अपनी तरफ से कम-अज-कम एक एक छंद अवश्य जोडें। पी के भाई के जीवन की कहीं तो कोई कथा रेकार्ड हो जावे। जय बोर्ची! जय सस्तापन!!)
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1 comment:
sundar hai vah vah.
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