Monday, 8 October 2007

मीडिया के लिए

बहुत साल पहले 'पहल' के किसी अंक में एक पाकिस्तानी शायर (शायद शिकेब जलाली) की नज़्म पढी थी। उसी का मुखड़ा पेश है (बाक़ी याद नहीं है। किसी भाई के पास हो तो कृपा कर के भेजें। नज़्म का शीर्षक था 'सहाफी से' . बाई द वे ,पत्रकार को उर्दू में सहाफी कहा जाता है. ) :

मुल्क की बेहतरी का छोड़ ख़्याल
अब कलम से इजारबन्द ही डाल.