Tuesday, 2 October 2007

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5 comments:

जगत चन्द्र पटराकर 'महारथी' said...

".....बड़े-बड़े क्लासिकल शायरों ने बहुत सा ऐसा काव्य रचा है जो अब अंडरग्राउंड माना जाता है." (अंडरग्राउंड मायने ज़मीन में दफन)

महाराज, अब कब्र से बाहर निकालोगे तो सड़ाध तो फैलेगी ही। इन अंडरग्राउंड अशआर को चैन की नीद सोने दो ना!

मुनीश ( munish ) said...

As an old proverb goes: One who tries to please all, pleases none!Here even our intention has never been to please anybody,we just try to share something said in a lighter vain . Something of a literary substance which we dont ignore but feel awkward talking about because of a snobbish circle of which we are a part n parcel. So if mr.Udantashtri or UFO is displeased we should take this in a lighter vain because it is something which was never unexpected. However, i do feel shocked to read that mr. Ashok Pandey is also seeking a voluntary break. Now, comeon Ashok bhai dont be so cruel! please reconsider ur decision and be back here as we all love you and respect you. Mr.UFO perhaps comes from a different planet so let him be there. In fact snobs like him shud keep away from Sasta Sher.

Udan Tashtari said...

मुनीष भाई

वैचारिक पृष्ठभूमि पर सबका एक साथ सहमत होना तो कतई आवश्यक नहीं. मैने मात्र अपने विचार रखते हुए खुद को अलग करने की बात की है. मैने तो यह कहा ही नहीं कि वह पोस्ट गलत है या ऐसा नहीं होना चाहिये. बस, मैं इस तरह की बातों से सहमत नहीं हो पाता और न ही इस प्रकार के प्रयासों में भागीदारी करने का इच्छुक हूँ. शायद मुझमें ही कुछ कमी हो. अपने आपको किसी विचारधारा से अलग रखने का अधिकार मुझे है, यह स्वतंत्रता तो आप भी मुझे देंगे, भले ही आप मुझे दूसरे ग्रह का निवासी मानें. :)

मेरी वजह से अगर अशोक भाई की भावनाओं को कोई ठेस पहुँची हो, तो यह मेरा तनिक भी उद्देश्य नहीं था. मैं उनसे क्षमाप्रार्थी हूँ. अशोक भाई का सस्ते शेर से ब्रेक लेना कतई उचित नहीं है. मेरी उनसे गुजारिश है कि वह कृप्या जारी रहें.

मेरा मात्र एक ही निवेदन है कि मुझे इस ब्लॉग से अलग कर दें. किसी से कोई द्वेष नहीं. किसी के प्रति मन में कोई खटास नहीं. जब भी मिलें, प्रेम से मिलें. एक अच्छे मोड़ पर विदा लेना चाहता हूँ. अब तक के सफर ने आनन्दित किया, बहुत आभार आप सबका.

वैसे तो एक ही ग्रह पर रह कर भी मुझे मेरे हाल पर छोड़ा जा सकता है, फिर क्यूँ मुझे ग्रह निकाले जैसी सजा दे रहें, भाई. :) मगर यदि आपको अच्छा लगता हो तो यह भी सही. आप मुझे यू एफ ओ या दूसरे ग्रह का निवासी ही मान लें. बस प्रसन्न रहें.

अनेकों शुभकामनाऐं.

शुभेक्षु

समीर लाल

मुनीश ( munish ) said...

samir bhai,
ap khamkhan senti hue ja rahe hain. apko ya Ashok bhai kisi ko bhi yahan se jaane nahi diya ja sakta chunki apse hame pyar hai

munish

ajai said...

साथियों इधर दो-तीन दिन मैं कम्प्यूटर से दूर था इसलिए सारी बात नही मालुम .आज पता चला की भाई समीरजी और भाई अशोक जी हमसे नाता तोड़ रहे हैं. मुझे आप दोनों लोगों से लगाव है और चाहूँगा की आप लोग अपने दाद और शेरों के साथ हमारा हौसला बढाते रहें.