Monday, 8 October 2007

काव्यांजलि


अमा चले गये अकबर क़बर में, चचा भी छोड़ गये अकेला,
ज़रा उम्मीद थी जिनसे वो भी हुए बरामद लगाये हुए ठेला

ज़रा उम्मीद थी जिनसे वो अब लगाते हैं ठेला (इरफ़ान का सुझाव)

3 comments:

Ashok Pande said...

बखत बखत की बात हैगी इरफान बाबू। कल मेला आज ठेला

इरफ़ान said...

सुझाव को वक्तव्य न समझें और इसे महज़ मीटर दुरुस्त करने की हिमाक़त समझें.

मुनीश ( munish ) said...

arre bhai apko jaise uchit lage vaise kallen! POWER OF ATTORNEY APKO DI BUSS!