१९९० में मैंने पहली बार देहरादून के संस्कृति कर्मियों के बेहद ऊर्जावान केंद्र 'टिपटौप' रेस्त्रां के दर्शन किये थे। पता लगा था कि मशहूर कवि-कलाकार अवधेश (जिन्हें अज्ञेय जी ने अपनी अन्तिम सप्तक श्रृंखला में जगह दी थी) और गजलकार हरजीत सिंह भी यहीं से ऑपरेट करते हैं। अन्य साथियों के साथ ये दोनों पर अपने तमाम साहित्यिक ऑपरेशन 'टंटा' समिति के नाम से चलाया करते थे। आमतौर पर टंटों से दूर रहने वाली इस संस्था का यह abrreviated नाम था। TANTA का पूरा नाम था : Total Awareness for Neo Toxic Adventures. ज़रा देखिए यह समिति अपने हिन्दी अनुवाद में किस कदर आकर्षक लगती थी : 'पूर्ण टुन्नावस्था का नव नशीलित रोमांच'।
संस्था के अघोषित मुखिया स्वर्गीय अवधेश का एक सस्ता खुसरोवादी शेर मंत्रवाक्य की हैसियत रखता था। पेश है:
गोरी सोवत सेज पे, सो मुँह पर डारे खेस
चल खुसरो घर आपने साँझ भई अवधेस
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1 comment:
SUNDAR, BAHUT KHOOB.LOVELY JAANKARI.SHUKRIYA.
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