...but it is far removed from reality!! In fact u never dare drink inside a mosque 'cos u are educated and know what Jaish, Harkat or Qaeda will do to u.u better b realistic ven including any religious symbol in poetry and better u avoid it.
meine pee hai masjid mein. asal mein pee hai. zaraa bhi jhooth nahin. mandir mein bhi pee hai aur tamaam un jagahon par jahan aapke 'vo' rehtey hain Mr. Anonymous. Aap ne peenee ho to batayen. Aisee mauj kataaoonga sab bhool jaaiyenge aap. Aur apne 'Abboo' honey ki khushfehmee bhi. Asal mein ye maamlaa daaru ka hai hi nahin. Sangeen hai babu jee. Iseeliye rangeen hai.
दोस्तो, ये तो आप महसूस करते ही होंगे कि शायरी की एक दुनिया वह भी है जिसे शायरी में कोई इज़्ज़त हासिल नहीं है. ये अलग बात है कि इसी दुनिया से मिले कच्चे माल पर ही "शायरी" का आलीशान महल खड़ा होता है, हुआ है और होता रहेगा. तो...यह ब्लॉग ज़मीन पर पनपती और परवान चढ़ती इसी शायरी को Dedicated है. मुझे मालूम है कि आप इस शायरी के मद्दाह हैं और आप ही इस शायरी के महीन तारों की झंकार को सुनने के कान रखते हैं. कोई भी शेर इतना सस्ता नहीं होता कि वो ज़िंदगी की हलचलों की तर्जुमानी न कर सके. बरसों पहले मैंने इलाहाबाद से प्रतापगढ़ जा रही बस में पिछली सीट पर बैठे एक मुसाफ़िर से ऐसा ही एक शेर सुना था जो हमारी ओरल हिस्ट्री का हिस्सा है और जिसके बग़ैर हमारे हिंदी इलाक़े का साहित्यिक इतिहास और अभिव्यक्तियों की देसी अदाएं बयान नहीं की जा सकतीं. शेर था-- बल्कि है--- वो उल्लू थे जो अंडे दे गये हैं, ये पट्ठे हैं जो अंडे से रहे हैं . .............इस शेर के आख़ीर में बस उन लोगॊं के लिये एक फ़िकरा ही रह जाता है जो औपनिवेशिक ग़ुलामी और चाटुकारिता की नुमाइंदगी कर रहे हैं यानी उल्लू के पट्ठे. --------तो, आइये और बनिये सस्ता शेर के हमराही. मैं इस पोस्ट का समापन एक अन्य शेर से करता हूं ताकि आपका हौसला बना रहे और आप सस्ते शेर के हमारे अपर और लोवर क्राईटेरिया को भांप सकें. पानी गिरता है पहाड़ से दीवार से नहीं, दोस्ती मुझसे है मेरे रोजगार से नहीं. --------------------------------------------- वैधानिक चेतावनी:इस महफ़िल में आनेवाले शेर, ज़रूरी नहीं हैं कि हरकारों के अपने शेर हों. पढ़ने-सुननेवाले इन्हें पढ़ा-पढ़ाया या सुना-सुनाया भी मानें. -------------------- इरफ़ान 12 सितंबर, 2007
सात सस्ते शेर इस महफ़िल में भेजने के बाद आपको मौक़ा दिया जायेगा कि आप एक लतीफ़ा भेज दें. तो देर किस बात की ? आपके पास भी है एक सस्ता शेर... वो आपका है या आपने किसी से सुना इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. बस मुस्कुराइये और लिख भेजिये हमें ramrotiaaloo@gmail.com पर और बनिये महफ़िल के सितारे.
8 comments:
बढिया है भाई.
...but it is far removed from reality!! In fact u never dare drink inside a mosque 'cos u are educated and know what Jaish, Harkat or Qaeda will do to u.u better b realistic ven including any religious symbol in poetry and better u avoid it.
हद है अनाम भाई.
क्या आपने कभी वाकई मसज़िद में बैठ कर नहीं पी? तब आप उसका मज़ा क्या जानेंगे?
हमारी खूब छनती है, जब हम तीनों मिल बैठते हैं-मैं, चचा गालिब और शराब. आपका भी स्वागत है इस महफ़िल में, जब आना चाहें आ जाइएगा.
भाई इरफ़ान भी आ जाते हैं कभी-कभार.
दाद, दिनाई, खाज, खुजली मधुप जी सब आपको
अल काएदा आदि की लाठियाँ एनानिमस के बाप को
हां-हां-हां ........
aanam bhai
aapne nahi padha . mirja galib ka mashhur sher hia
saki sharab pine de masjig mie bethkar/ ya vo jagah bata jahda khuda na hoa
aur hum teenon masjid men hi baithte hain, yah bhi darj kiya jaye.
Bachche ho tum log!! hans lo ga lo.
meine pee hai masjid mein. asal mein pee hai. zaraa bhi jhooth nahin. mandir mein bhi pee hai aur tamaam un jagahon par jahan aapke 'vo' rehtey hain Mr. Anonymous. Aap ne peenee ho to batayen. Aisee mauj kataaoonga sab bhool jaaiyenge aap. Aur apne 'Abboo' honey ki khushfehmee bhi. Asal mein ye maamlaa daaru ka hai hi nahin. Sangeen hai babu jee. Iseeliye rangeen hai.
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