अशोकजी, अद्भुत है यह प्रयास। हम जैसे उन हिन्दुस्तानियों को जो तथाकथित सभ्य लोगों के बीच विचर रहे हैं, बीच बीच में भदेस का बुखार आता है। वह टायफाइड में बदले इससे पहले ही उसे सस्ता शेर पर आ जाना चाहिए या लिख लेना चाहिए। सुन लेना चाहिए या सुना लेना चाहिए। हमारी दिली बधाई कुबूल फर्माएं । हमें आपसे ईर्ष्या भी है कि ये आइडिया मोबाईल हमारे कानों में क्यों नहीं बजा। बहरहाल आपकी टीम के मेंबर तो हम बन ही सकते हैं। करते हैं सात शेरों का जुगाड़...
...आपने सचमुच अद्भुत काम किया है। मुदित हूं, पर शेर जल्दी इकट्ठा हो जाएंगे , मुतमईन नहीं हू।
फुस्कारे शेर पर आप इकलौते शख्स थे दाद देने वाले। अलबत्ता वो आपने मुझे मेल पर दी थी। आप जैसे भाषाविद की दाद पा कर सस्ता शेर दुबारा ज्वाइन करना सफल हो गया। वैसे इरफान भाई इस शानदार ब्लॉग के निर्माता हैं। आप को वही यहाँ बुलाएँगे। इस के पहले कुछ भद्रजनों ने इस ब्लॉग को लेकर अपनी hypocrisy के कारण मुझे यहाँ से निकाल ही दिया था। आप और इरफान जैसे शानदार लोग दुनिया में हैं - यह यहाँ बने रहने के लिए पर्याप्त है।
शुक्रिया इरफान भाई, अशोक भाई बज्म-ऐ-सुब्हानअल्लाह में दाखिला देने के लिए। इस सस्ते शेर की महफिल में हिप्पोक्रेट्स का भी दखल है क्या ? अक्सर जो किया करते हैं पाखंड-दिखावा
भूले से न देना कभी महफिल में बुलावा
अशोक भाई, हिन्दी भाषा और संस्कृति को समझना चाहता हूं और ऐसे ही प्रयासों के तहत जो कुछ जानने को मिलता है वही सबके साथ साझा कर रहा हूं। भाषाविद् शब्द तो खैर बहुत भारी हो गया, हमें तो भाषा की पूरी समझ का भी मुगालता नहीं है।
दोस्तो, ये तो आप महसूस करते ही होंगे कि शायरी की एक दुनिया वह भी है जिसे शायरी में कोई इज़्ज़त हासिल नहीं है. ये अलग बात है कि इसी दुनिया से मिले कच्चे माल पर ही "शायरी" का आलीशान महल खड़ा होता है, हुआ है और होता रहेगा. तो...यह ब्लॉग ज़मीन पर पनपती और परवान चढ़ती इसी शायरी को Dedicated है. मुझे मालूम है कि आप इस शायरी के मद्दाह हैं और आप ही इस शायरी के महीन तारों की झंकार को सुनने के कान रखते हैं. कोई भी शेर इतना सस्ता नहीं होता कि वो ज़िंदगी की हलचलों की तर्जुमानी न कर सके. बरसों पहले मैंने इलाहाबाद से प्रतापगढ़ जा रही बस में पिछली सीट पर बैठे एक मुसाफ़िर से ऐसा ही एक शेर सुना था जो हमारी ओरल हिस्ट्री का हिस्सा है और जिसके बग़ैर हमारे हिंदी इलाक़े का साहित्यिक इतिहास और अभिव्यक्तियों की देसी अदाएं बयान नहीं की जा सकतीं. शेर था-- बल्कि है--- वो उल्लू थे जो अंडे दे गये हैं, ये पट्ठे हैं जो अंडे से रहे हैं . .............इस शेर के आख़ीर में बस उन लोगॊं के लिये एक फ़िकरा ही रह जाता है जो औपनिवेशिक ग़ुलामी और चाटुकारिता की नुमाइंदगी कर रहे हैं यानी उल्लू के पट्ठे. --------तो, आइये और बनिये सस्ता शेर के हमराही. मैं इस पोस्ट का समापन एक अन्य शेर से करता हूं ताकि आपका हौसला बना रहे और आप सस्ते शेर के हमारे अपर और लोवर क्राईटेरिया को भांप सकें. पानी गिरता है पहाड़ से दीवार से नहीं, दोस्ती मुझसे है मेरे रोजगार से नहीं. --------------------------------------------- वैधानिक चेतावनी:इस महफ़िल में आनेवाले शेर, ज़रूरी नहीं हैं कि हरकारों के अपने शेर हों. पढ़ने-सुननेवाले इन्हें पढ़ा-पढ़ाया या सुना-सुनाया भी मानें. -------------------- इरफ़ान 12 सितंबर, 2007
सात सस्ते शेर इस महफ़िल में भेजने के बाद आपको मौक़ा दिया जायेगा कि आप एक लतीफ़ा भेज दें. तो देर किस बात की ? आपके पास भी है एक सस्ता शेर... वो आपका है या आपने किसी से सुना इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. बस मुस्कुराइये और लिख भेजिये हमें ramrotiaaloo@gmail.com पर और बनिये महफ़िल के सितारे.
6 comments:
अशोकजी, अद्भुत है यह प्रयास। हम जैसे उन हिन्दुस्तानियों को जो तथाकथित सभ्य लोगों के बीच विचर रहे हैं, बीच बीच में भदेस का बुखार आता है। वह टायफाइड में बदले इससे पहले ही उसे सस्ता शेर पर आ जाना चाहिए या लिख लेना चाहिए। सुन लेना चाहिए या सुना लेना चाहिए।
हमारी दिली बधाई कुबूल फर्माएं । हमें आपसे ईर्ष्या भी है कि ये आइडिया मोबाईल हमारे कानों में क्यों नहीं बजा। बहरहाल आपकी टीम के मेंबर तो हम बन ही सकते हैं। करते हैं सात शेरों का जुगाड़...
...आपने सचमुच अद्भुत काम किया है। मुदित हूं, पर शेर जल्दी इकट्ठा हो जाएंगे , मुतमईन नहीं हू।
Yaar ... pahli baar apke blog par nazar gayi hai ......
bahoot achhe ....
Very good ...
vah - vah .... pichhle saare sher ke liye ek saath ...ek tata - SUMO bhar ke vah vah
वाह वाह क्या बात है!
फुस्कारे शेर पर आप इकलौते शख्स थे दाद देने वाले। अलबत्ता वो आपने मुझे मेल पर दी थी। आप जैसे भाषाविद की दाद पा कर सस्ता शेर दुबारा ज्वाइन करना सफल हो गया। वैसे इरफान भाई इस शानदार ब्लॉग के निर्माता हैं। आप को वही यहाँ बुलाएँगे। इस के पहले कुछ भद्रजनों ने इस ब्लॉग को लेकर अपनी hypocrisy के कारण मुझे यहाँ से निकाल ही दिया था। आप और इरफान जैसे शानदार लोग दुनिया में हैं - यह यहाँ बने रहने के लिए पर्याप्त है।
इरफान बाबू, अजित भाई को बुलावा भेजो ना जल्दी से!
Dear Ajitji!
Please send your email id at ramrotiaaloo@gmail.com
your presence will be highly appreciated.Thanx
Irfan
www.sirfirf.blogspot.com
शुक्रिया इरफान भाई, अशोक भाई बज्म-ऐ-सुब्हानअल्लाह में दाखिला देने के लिए।
इस सस्ते शेर की महफिल में हिप्पोक्रेट्स का भी दखल है क्या ?
अक्सर जो किया करते हैं पाखंड-दिखावा
भूले से न देना कभी महफिल में बुलावा
अशोक भाई, हिन्दी भाषा और संस्कृति को समझना चाहता हूं और ऐसे ही प्रयासों के तहत जो कुछ जानने को मिलता है वही सबके साथ साझा कर रहा हूं। भाषाविद् शब्द तो खैर बहुत भारी हो गया, हमें तो भाषा की पूरी समझ का भी मुगालता नहीं है।
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