सस्ता शेर एक समंदर ,नदिया पढ पाता हुँ "
बाल्टी भर याद रहता है ,मग भर लिख पाता हुँ"
इस महफ़ील मे कँजुस बहुत है लोग ।
तभी तो चुल्लु भर दाद पाता हुँ ।
और अभी मुनिष जी और विजय भाई के लिये खास पेशकश गुरुरब्रह्मा कि तर्ज पर
गुरु "रम "हा ,गुरुर विस्की ,गुरुर "जीन "एश्वरा "
गुरुर साक्षात पेग ब्रह्मा ,तस्मै श्री "बियरे" नमः
भगवान आपको सदा टुन्न रखे "
और अब आखरी है इसे भी झेल लिजिये...
कोइ पत्थर से ना मारे मेरे दिवाने को "
बम से उडा दो साले पैजामे को "
Tuesday 13 May 2008
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4 comments:
क्या बात है...बाल्टी भर याद रहता है ,मग भर लिख पाता हुँ" क्या कहने हैं..लगे रहें
क्या बात है! आपकी रचनात्मकता की बोतल क्या ख़ूब छलकी है इस श्लोक में! यों ही छलकाते रहिये भाई!
aap jab tak ye desi yun pilate rahenge
hum aanad ke samnder me gota lagate rahenge
.... bahut khub, bas likhte rahi ye
CHEERS BHAI JAAN!
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