Saturday 24 May 2008

'फिक्र' ददा माफ़ करना

फिक्र ददा माफ़ करना
एक बहुत पुराना किस्सा कही सुना था फिक्र दद्दा के बारे मे। बहुत अच्छे शायर थे (है ?)। किसी ने उन्हे कहा की आपका बेटा जो बाहर पढ़ने भेजा हुआ है आज कम पढ़ाई मे कम और इश्क मे ज्यादा मसरूफ है । फिक्र साहिब गए वहाँ पर लड़का नही मिला। उन्हे आईडिया आया और वोह उस लड़की के पीछे हो लिए इस उम्मीद मैं की कभी न कभी तो लड़का इससे मिलने आयेगा । काफी देर पीछा करने पर लड़की को भी कुछ अहसास हुआ की एक बुड्ढा उसका पीछा कर रहा है । मामला कही उल्टा न पड़ जाए यह सोच कर फिर्क ने कुछ इस तरह मामला सुलझाया :-

फ्राक वाली ये 'फिक्र' नही तेरी फिराक मे !
यह तो ख़ुद है उसकी फिराक मे जो है तेरी फिराक में !!
--शैलेन्द्र 

2 comments:

मुनीश ( munish ) said...

vaaaah! mast!

ek aam aadmi said...

ye kuchh is tarah se hai
ye firak wali ye na samajh ki firak teri firak me hai

firak to uski firak me hai
jo teri firak me hai