शेर छुप कर शिकार नही ्करते,बुज्दील सीने पे वार नही करते "
हम बेधडक पेलते जाते है शेर ,हम दाद का इंतजार नही करते "
तो आप सबो के लिये आदाब बजा के लाता हूँ, अपनी औकात पे आता हूँ और फ़रमाता हूँ !!
गर हिम्मत है तो ताज महल को हिला के देख "
नही है तो आ बैठ दो पैग मार "
और ताज महल को हिलता हुआ देख "
Saturday, 3 May 2008
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4 comments:
शानदार और जानदार है । उम्दा रचना।
Look everyone! Deepu getting naughty here. Keep it upp Pra ji !
दीपक प्राजी, कोटा बहुत कम है. २ पैग में कुछ नहीं हिलेगा? ताजमहल हिलाने के लिए पूरा खम्भा लग जायेगा.!
विजय जी !!
कोई गल नई जी !! मय्खान्वी जी नाल बियर दी नदी दा अड्रेस सी।
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