Sunday 11 May 2008

पेश है एक प्रेमीपुंगव का एसएमएस वाला शेर

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एक अजीब-सा मंज़र नज़र आता है
हर एक कतरा समंदर नज़र आता है
कहाँ जाकर बनाऊं मैं घर शीशे का
हर एक हाथ में पत्थर नज़र आता है.

2 comments:

Prabhakar Pandey said...

कहाँ जाकर बनाऊं मैं घर शीशे का
हर एक हाथ में पत्थर नज़र आता है.

वाह-वाह। बहुत ही सुंदर और सटीक। कमाल की रचना।

दीपक said...

आप कमाल का लिखते है सोने मे तोल दु "
आप के लिये खुशीयो के दरवाजे खोल दु "
कहिये इतना काफ़ी है कि नही "
या दो चार झुठ और बोल दु "

हा हा हा हा !!मजा आया पढकर समझने मे वक्त लगेगा !!