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एक अजीब-सा मंज़र नज़र आता है
हर एक कतरा समंदर नज़र आता है
कहाँ जाकर बनाऊं मैं घर शीशे का
हर एक हाथ में पत्थर नज़र आता है.
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2 comments:
कहाँ जाकर बनाऊं मैं घर शीशे का
हर एक हाथ में पत्थर नज़र आता है.
वाह-वाह। बहुत ही सुंदर और सटीक। कमाल की रचना।
आप कमाल का लिखते है सोने मे तोल दु "
आप के लिये खुशीयो के दरवाजे खोल दु "
कहिये इतना काफ़ी है कि नही "
या दो चार झुठ और बोल दु "
हा हा हा हा !!मजा आया पढकर समझने मे वक्त लगेगा !!
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