Thursday, 29 May 2008

पेश-ए-खिदमत है एक एसएमएस वाला शेरनुमा कुछ-


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ख्वाब मंजिल थे और मंजिलें ख्वाब थीं, रास्तों से निकलते रहे रास्ते,
जाने किस वास्ते....

जाने किसकी तलाश उनकी आंखों में थी,
आरज़ू के मुसाफिर भटकते रहे,
जितने भी वे चले उतने ही बिछ गए,
राह में फासले...

1 comment:

दीपक said...

मै मरा तेरे लिये तु ना मर मेरे लिये
तु मरा मेरे लिये उपर खडा तेरे लिये

विजय भाई टिप्पणी समझ मे आई कि नही नही आई तो बताइये हम समझाने आयेंगे और अगर ना आ पाये तो ये बताने आयेंगे कि हम नही आयेंगे !! हा हा हा हा fill in the blanks चालु करिये !!