गीला कोरता हूँ ना शूखा कोरता हूँ
तुम शाला मोत रोहो ये ही दूआ कोरता हूँ।
(keywords: गीला, शूखा , शाला मोत, कोरता। थैँकू शर लोगो।
Tuesday, 30 October 2007
Sunday, 28 October 2007
ट्रक ड्राइवरों के नाम
चलती है गाड़ी उड़ती है धूल
जलते हैं दुश्मन खिलते हैं फूल
14 का फूल 45 का माला
बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला
(गाड़ी के नंबर के हिसाब से लिखा जाता है, यानी इस मामले में 1445 नंबर का ट्रक)
टाटा में जन्मी
राँची में सिंगार हुआ
धनबाद से लदके चली
ड्राइवर से प्यार हुआ
(टाटा का ट्रक इंजन जिसकी बॉडी राँची में तैयार हुई और उसके बाद छपरा के ड्राइवर के प्यार में गिरफ्तार हुई)
मालिक तो अच्छा इंसान है
मगर चमचों से परेशान है
(ट्रक मालिक के दोस्तों चमचों के नाम ड्राइवर का संदेश)
मालिक की बीवी धनवंती
मालिक की गाड़ी बसंती
जलता है इराक़ का पानी
ड्राइवर का पसीना और खून
तब रोटी मिलती है दो जून
(एक श्रमजीवी ड्राइवर का बयान)
जलते हैं दुश्मन खिलते हैं फूल
14 का फूल 45 का माला
बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला
(गाड़ी के नंबर के हिसाब से लिखा जाता है, यानी इस मामले में 1445 नंबर का ट्रक)
टाटा में जन्मी
राँची में सिंगार हुआ
धनबाद से लदके चली
ड्राइवर से प्यार हुआ
(टाटा का ट्रक इंजन जिसकी बॉडी राँची में तैयार हुई और उसके बाद छपरा के ड्राइवर के प्यार में गिरफ्तार हुई)
मालिक तो अच्छा इंसान है
मगर चमचों से परेशान है
(ट्रक मालिक के दोस्तों चमचों के नाम ड्राइवर का संदेश)
मालिक की बीवी धनवंती
मालिक की गाड़ी बसंती
जलता है इराक़ का पानी
ड्राइवर का पसीना और खून
तब रोटी मिलती है दो जून
(एक श्रमजीवी ड्राइवर का बयान)
हमने तो उनकी याद में ज़िंदगी गुज़ार दी,
Saturday, 27 October 2007
वे din
मेरी आंखों से दो बूंद आंसू जो टपके
उसने परखनली में लिया टेस्ट कर लिया ।
यह शेर कभी केमेस्टरी लैब की दीवार के साए में लिखा गया था )
उसने परखनली में लिया टेस्ट कर लिया ।
यह शेर कभी केमेस्टरी लैब की दीवार के साए में लिखा गया था )
Friday, 26 October 2007
Soliloqui
mere sheron me numaya hai ek mukhtalif si VARIETY,
kahan main aur kahan ye blogiyon ki MUTUAL ADMIRATION SOCIETY!!
kahan main aur kahan ye blogiyon ki MUTUAL ADMIRATION SOCIETY!!
Thursday, 25 October 2007
मूंछ के बाल काले और सर के बाल सफ़ेद
जब मैंने सस्ता शेर शुरू किया तो मैंने सबसे पहला आमंत्रण विमल भाई को भेजा.अभी तक जानी हुई दुनिया में विमल भाई ही वो व्यक्ति हैं जिनके साथ मेरी ज़िंदगी के ठहाकों का अस्सी प्रतिशत हिस्सा जुड़ा हुआ है.

.तेइस साल पुरानी एक फ़ोटो: बाएं विमल भाई और दाएं मेरा ठहाका
दैनिक जीवन से ऐसी स्थितियों को observe कर लेने की ऐसी extraordinary नज़र फिर मुझे सिर्फ़ राजदीप रंधावा में मिली जो कि आजकल जयपुर के एक एफ़एम रेडियो का ज़िम्मा संभाल रहे हैं. बहरहाल. मैं कई दिनों से ये सोचने में लगा था कि क्या समय के डंडों ने उनकी पुरानी धूल झाड़ डाली है...तभी याद आया पुरनियों का वो मुहावरा चोर चोरी से जाये हेराफेरी से न जाये . तो मैंने उनकी हेराफेरी तलाशना शुरू की. सस्ता शेर की शुरुआत में उन्होंने जो शेर भेजे हैं उनसे मुझे यक़ीन हो गया है कि शेर अभी बूढ़ा नहीं हुआ है. सस्ता शेर में मैंने सात शेरों पर एक लतीफ़े का जो बोनस घोषित किया है वो आइडिया विमल भाई के जग प्रसिद्ध लतीफ़ों को जगह देने का ही है. उन्होंने अभी इस दिशा में खुद क़दम नहीं बढ़ाया है लेकिन हर अपराधी अपने पीछे सूराग़ छोड़ जाता है की तर्ज़ पर आज सुबह मुझे जो सूराग़ मिला उसे पेश कर रहा हूं और इसी के साथ सस्ता शेर में उनसे इस सिलसिले को बढ़ाने की गुज़ारिश कर रहा हू.
नीचे लिखे हिस्से को पूरा पढने के लिये यहां क्लिक करें.
एक बार मै अपने ऑफ़िस की सीढियो से नीचे उतर रहा था तो मेरे एक सीनियर रास्ते में मिल गये, मैने क्या देखा, कि उनकी मूंछ के बाल उनके सर के बालों से कुछ ज़्यादा ही काले नज़र आ रहा थे . मैने इसका राज़ पूछा, तो उन्होने बताया कि मेरी मूंछ की उम्र सर के बालो से सोलह साल कम है, लेकिन ये बताना कि ये कमाल किसी रंग का है, इससे कन्नी काट गये.

.तेइस साल पुरानी एक फ़ोटो: बाएं विमल भाई और दाएं मेरा ठहाका
दैनिक जीवन से ऐसी स्थितियों को observe कर लेने की ऐसी extraordinary नज़र फिर मुझे सिर्फ़ राजदीप रंधावा में मिली जो कि आजकल जयपुर के एक एफ़एम रेडियो का ज़िम्मा संभाल रहे हैं. बहरहाल. मैं कई दिनों से ये सोचने में लगा था कि क्या समय के डंडों ने उनकी पुरानी धूल झाड़ डाली है...तभी याद आया पुरनियों का वो मुहावरा चोर चोरी से जाये हेराफेरी से न जाये . तो मैंने उनकी हेराफेरी तलाशना शुरू की. सस्ता शेर की शुरुआत में उन्होंने जो शेर भेजे हैं उनसे मुझे यक़ीन हो गया है कि शेर अभी बूढ़ा नहीं हुआ है. सस्ता शेर में मैंने सात शेरों पर एक लतीफ़े का जो बोनस घोषित किया है वो आइडिया विमल भाई के जग प्रसिद्ध लतीफ़ों को जगह देने का ही है. उन्होंने अभी इस दिशा में खुद क़दम नहीं बढ़ाया है लेकिन हर अपराधी अपने पीछे सूराग़ छोड़ जाता है की तर्ज़ पर आज सुबह मुझे जो सूराग़ मिला उसे पेश कर रहा हूं और इसी के साथ सस्ता शेर में उनसे इस सिलसिले को बढ़ाने की गुज़ारिश कर रहा हू.
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Wednesday, 24 October 2007
Tuesday, 23 October 2007
Monday, 22 October 2007
Code of conduct(Haryana chapter)
IMLI SE KHATTA NEEMBU , NEEM SE KARELA KADVA
JO NA PEEVE NA PEEN DE AISA YAAR BHADVA!!
JO NA PEEVE NA PEEN DE AISA YAAR BHADVA!!
दारू ख़राब ला के
दारू ख़राब ला के बचाए जो चार सौ
दो टैक्सी में खर्च हुए दो इलाज में
(ज़फर साब से माफ़ी के साथ)
दो टैक्सी में खर्च हुए दो इलाज में
(ज़फर साब से माफ़ी के साथ)
Sunday, 21 October 2007
SANNATE KE ASHAAR
Friday, 19 October 2007
मेरी मौत से कितना फ़ायदा होगा...
Wednesday, 17 October 2007
A AB LAUT CHALEN( O BUDHDHI JEEVI!!)
mar chuka FREUD chala gaya KAMOO,
bhot ho gaya london- paris aao chalen PALAMOO
bhot ho gaya london- paris aao chalen PALAMOO
Tuesday, 16 October 2007
KAFIA & MAFIA
JO KARE HAIN NUKTA CHI BAHOT AUR UTHAVEN HAIN MUDDA KAAFIYE KA,
SAMAJ LEEJO MERI JAAN UNKO TUM MEMBER SHAYRI KE MAFIYE KA !!
SAMAJ LEEJO MERI JAAN UNKO TUM MEMBER SHAYRI KE MAFIYE KA !!
elaan-e-jung
MUJKO YARO MAAF KARNA KI KAAFIYA ZARA TANG HAI,
SHAAYRI KE KHALIFON SE CHUNANCHE AJ MERI JUNG HAI.
Yaar daad bi de diya karo kabhi!!
SHAAYRI KE KHALIFON SE CHUNANCHE AJ MERI JUNG HAI.
Yaar daad bi de diya karo kabhi!!
Sunday, 14 October 2007
मुझे जला देना या
मुझे जला देना या दफना देना ,
मरते समय एक घूंट रम पिला देना /
मै ताजमहल नही मांगता यारो ,
मेरी कब्र पर एक गर्ल्स होस्टल खुलवा देना //
मरते समय एक घूंट रम पिला देना /
मै ताजमहल नही मांगता यारो ,
मेरी कब्र पर एक गर्ल्स होस्टल खुलवा देना //
BAKHAT BAKHAT KI BAAT
RAAM RAAJ ME DOODH MILE AR KISHAN RAAJ ME GHEE,
KALJUG ME MADIRA BHALI JAISE MILE TU PEE.
KALJUG ME MADIRA BHALI JAISE MILE TU PEE.
मुनीश के लिए
मांगे सै ना जिन मिलै़, ना मांगै से रम्म
अपनी दारू पीजिए, बिस्तर परिए धम्म।
(आज के लिए बहुत हो गया)
अपनी दारू पीजिए, बिस्तर परिए धम्म।
(आज के लिए बहुत हो गया)
कतरनें
अशोक पांडे,
टोटली मेरा शेर,
बिक गया माल साहेब
हिंदी साहित्य का सवा सेर
इक डाकू बोला चोर से, मुझे रोक, चोर न बन जाऊं
कवि बोला नामवर से, कहिं फोक लोर न बन जाऊं
कवि बोला नामवर से, कहिं फोक लोर न बन जाऊं
कतरनें
अशोक पांडे,
टोटली मेरा शेर,
नामवर,
मेरी हिंदी महान
टोटल भदेस दुबारा
पाद - ए - मेहबूब ने इक गुलशन पशेमां कर दिया
बन्दा मगर डट्टा रहा खिड़की से बाहर देखता
बन्दा मगर डट्टा रहा खिड़की से बाहर देखता
कतरनें
अशोक पांडे,
टोटली मेरा शेर,
पाद - ए - मेहबूब,
फुस्कारे शेर
टोटल भदेस
पाद - ए - मेहबूब से टुक टेढ़ी न हुई नाक
हैरां हैं मिरी नाक का वो सबर देख के (वास्तविकता)
बो निगह तो ज़रा फेरे, मैं नाक बन्द कर लूं
बिस्कू तो मजा आ रिया है मिरी कबर देख के (ग़ैब)
(इरफान ! ज़रा ग़ैब वाला हिस्सा देख लओ साब और दुरुस्त कल्लो या हटा लओ )
हैरां हैं मिरी नाक का वो सबर देख के (वास्तविकता)
बो निगह तो ज़रा फेरे, मैं नाक बन्द कर लूं
बिस्कू तो मजा आ रिया है मिरी कबर देख के (ग़ैब)
(इरफान ! ज़रा ग़ैब वाला हिस्सा देख लओ साब और दुरुस्त कल्लो या हटा लओ )
कतरनें
अशोक पांडे,
टोटली मेरा शेर,
पाद - ए - मेहबूब,
फुस्कारे शेर
Saturday, 13 October 2007
पारम्परिक कम्यूनिस्टों के लोकगीतों की पहली पंक्तियों से बना शेर
तेरे खेतों में रसिया घुटनों घुटनों पानी (लेनिनवादी)
तेरे खेतों में चाइना गरदन गरदन पानी (माओवादी)
तेरे खेतों में चाइना गरदन गरदन पानी (माओवादी)
मेह्बूब का वादा!!
DEFINING MOMENTS!!
SHAYRI JITNI LIKHO KAM HAI
SHAYRI JITNI LIKHO VO KAM HAI..........
gehrai dekhen--
DARASAL SUKHANVAR KI YE DIMAGI- BALGAM HAI!!
SHAYRI JITNI LIKHO VO KAM HAI..........
gehrai dekhen--
DARASAL SUKHANVAR KI YE DIMAGI- BALGAM HAI!!
Friday, 12 October 2007
Thursday, 11 October 2007
आज के वास्ते जमीलुद्दीन आली का एक आखिरी दोहा
आज भी रोये कोयल बानी, कव्वे मारें तान
आज भी वीर खुले सीने और भांड चलायें बान।
* १९२६ में जन्मे जमीलुद्दीन आली पाकिस्तान के विख्यात कवि हैं। आली ने ज़ुल्फिकार अली भुट्टो की पार्टी से एक दफा चुनाव भी लड़ा था। अलबत्ता उस में वे हार गए थे। एक बेहतरीन गद्यकार के रुप में भी वे काफी नाम कमा चुके हैं और धारदार राजनैतिक व्यंग्य के लिए पाकिस्तान में बहुत लोकप्रिय भी हैं। करीब बीस साल पहले गुलाम अली ने उनकी एक ग़ज़ल गाई थी। तभी मुझे ये दोहे नैनीताल में मेरे परम आदरणीय उस्तादों में एक स्वर्गीय अवस्थी मास्साब ने सुनाये थे। मास्साब को गुलाम अली की गाई उस ग़ज़ल का मतला बहुत पसंद था:
"फिर उस से मिले जिस की खातिर बदनाम हुए, बदनाम हुए।
थे खास बहुत अब तक 'आली' अब आम हुए, अब आम हुए."
आज भी वीर खुले सीने और भांड चलायें बान।
* १९२६ में जन्मे जमीलुद्दीन आली पाकिस्तान के विख्यात कवि हैं। आली ने ज़ुल्फिकार अली भुट्टो की पार्टी से एक दफा चुनाव भी लड़ा था। अलबत्ता उस में वे हार गए थे। एक बेहतरीन गद्यकार के रुप में भी वे काफी नाम कमा चुके हैं और धारदार राजनैतिक व्यंग्य के लिए पाकिस्तान में बहुत लोकप्रिय भी हैं। करीब बीस साल पहले गुलाम अली ने उनकी एक ग़ज़ल गाई थी। तभी मुझे ये दोहे नैनीताल में मेरे परम आदरणीय उस्तादों में एक स्वर्गीय अवस्थी मास्साब ने सुनाये थे। मास्साब को गुलाम अली की गाई उस ग़ज़ल का मतला बहुत पसंद था:
"फिर उस से मिले जिस की खातिर बदनाम हुए, बदनाम हुए।
थे खास बहुत अब तक 'आली' अब आम हुए, अब आम हुए."
जमीलुद्दीन आली का एक और दोहा
बिस उगलें हैं जिनकी जबानें, सड़ गए जिन के नाम
आज भी जब हूँ बरसा बरसे, आय उन्हीं के काम.
आज भी जब हूँ बरसा बरसे, आय उन्हीं के काम.
जमीलुद्दीन आली का एक और दोहा
कविता, शिक्षा, चित्रकला का सौदा रोज़ का खेल
अन्दर मन की आँखें नीची बाहर मूंछ पे तेल।
अन्दर मन की आँखें नीची बाहर मूंछ पे तेल।
जमीलुद्दीन आली का एक दोहा
जिनके पड़ोसी भी नहीं जाने हैं उनके शुभ नाम
लंदन, बंबई, हॉलीवुड में वे सब कविता राम।
लंदन, बंबई, हॉलीवुड में वे सब कविता राम।
बाग्बां की बेटी और उसका आसिक
आसिक कहता है:
" ए बाग्बां की बेटी हमसे हुई क्यों बाग़ी
दो सेब तुझ से मांगे, कच्चे दिए ना दागी।"
बाग्बां की बेटी का उत्तर (क्या मीटर दुरुस्त किये जाने की दरकार रखता है भाईलोगो? सुझाव दें।) :
" ए बादशाह मेरे हम हैं गुलाम तेरे
टहनी पकड़ हिला ले, जितने गिरे वो तेरे।"
" ए बाग्बां की बेटी हमसे हुई क्यों बाग़ी
दो सेब तुझ से मांगे, कच्चे दिए ना दागी।"
बाग्बां की बेटी का उत्तर (क्या मीटर दुरुस्त किये जाने की दरकार रखता है भाईलोगो? सुझाव दें।) :
" ए बादशाह मेरे हम हैं गुलाम तेरे
टहनी पकड़ हिला ले, जितने गिरे वो तेरे।"
Wednesday, 10 October 2007
ASHOK KABAADI KI KHATIR
yahan vahahan ke jaane kahan hum ghooma kiye zamane me
mahol pursukoon paya magar ek tere KABAADKHAANE me!!
mahol pursukoon paya magar ek tere KABAADKHAANE me!!
दो सवालों के जवाब दें : एक मैथ्स का एक समाजशास्त्र का
एक:
एक आशिक एक दिन में जाता उन्नीस मील
तीन आशिक कितने दिन में जायेंगे पच्चीस मील।
दो:
मादर-ए-लैला ने तो ब्याही ना लैला क़ैस से
तुम अगर लैला की माँ होते तो क्या करते, लिखो!
एक आशिक एक दिन में जाता उन्नीस मील
तीन आशिक कितने दिन में जायेंगे पच्चीस मील।
दो:
मादर-ए-लैला ने तो ब्याही ना लैला क़ैस से
तुम अगर लैला की माँ होते तो क्या करते, लिखो!
अब कलम से इजारबंद ही डाल (' सहाफी से')

(कुछ दिन पहले मैंने अपनी कमजोर पड़ रही याददाश्त से इस नज़्म की दो गलतसलत पंक्तियां लिख दीं थीं सस्ता शेर पर। तब से बेचैन था। कल दिन भर सारा घर छान मारा और अपने कबाड़ से ये नज़्म वाली 'पहल' खोज डाली। ज्ञान जी और उर्दू से हिंदी में लिप्यान्तरण करने वाली परवीन खान को आभार के साथ साथियों के लिए पेश है पूरी नज़्म।)
हबीब जालिब की नज़्म
कौम की बेहतरी का छोड़ ख़्याल
फिक्र-ए-तामीर-ए-मुल्क दिल से निकाल
तेरा परचम है तेरा दस्त-ए-सवाल
बेजमीरी का और क्या हो मआल
अब कलम से इजारबंद ही डाल
तंग कर दे गरीब पे ये ज़मीन
ख़म ही रख आस्तान-ए-ज़र पे ज़बीं
ऐब का दौर है हुनर का नहीं
आज हुस्न-ए-कमाल को है जवाल
अब कलम से इजारबंद ही डाल
क्यों यहाँ सुब्ह-ए-नौ की बात बात चले
क्यों सितम की सियाह रात ढले
सब बराबर हैं आसमान के तले
सबको राज़ाअत पसंद कह के ताल
अब कलम से इजारबंद ही डाल
नाम से पेश्तर लगाके अमीर
हर मुसलमान को बना के फकीर
कस्र-ओ-दीवान हो कयाम कयाम पजीर
और खुत्बों में दे उमर की मिसाल
अब कलम से इजारबंद ही डाल
आमीयत की हम नवाई में
तेरा हम्सर नहीं खुदाई में
बादशाहों की रहनुमाई में
रोज़ इस्लाम का जुलूस निकाल
अब कलम से इजारबंद ही डाल
लाख होंठों पे दम हमारा हो
और दिल सुबह का सितारा हो
सामने मौत का नज़ारा हो
लिख यही ठीक है मरीज़ का हाल
अब कलम से इजारबंद ही डाल
*सहाफी : पत्रकार
Tuesday, 9 October 2007
इस मुल्क में
Monday, 8 October 2007
अशोक पांडे को सप्रेम.....

मिल गये नेट-कैफ़े में आज जनाब अब्दुर्रहीम खानखाना,
अमा,मिल गये नेट-कैफ़े में आज जनाब अब्दुर्रहीम खानखाना,
देखा के मुस्का रए हैं ओ बी पढ़-पढ के कबाड़खाना

दिल में तुम हो,
नज़र में तुम हो,
सांसों में तुम हो,
यादों में तुम हो,
domex वाले अंकल ठीक ही कहते हैं...किटाणु हर जगह रहते हैं..!!
कतरनें
कहो नितिन,
ये शायरी मेरी नहीं है,
स.म.स. शायरी
प्यार हुआ करे !!
चांद और सूरज
CONFESSIONS
KAMBAKHAT EK KHAAJ HAI SAAYRI JISKO HAME KHUJAANA HAI/
YE BATIYANA IS- US BLOG PE YARO FAKAT BAHANA HAI!!
bolo tara rara tara rara ........
YE BATIYANA IS- US BLOG PE YARO FAKAT BAHANA HAI!!
bolo tara rara tara rara ........
मीडिया के लिए
बहुत साल पहले 'पहल' के किसी अंक में एक पाकिस्तानी शायर (शायद शिकेब जलाली) की नज़्म पढी थी। उसी का मुखड़ा पेश है (बाक़ी याद नहीं है। किसी भाई के पास हो तो कृपा कर के भेजें। नज़्म का शीर्षक था 'सहाफी से' . बाई द वे ,पत्रकार को उर्दू में सहाफी कहा जाता है. ) :
मुल्क की बेहतरी का छोड़ ख़्याल
अब कलम से इजारबन्द ही डाल.
मुल्क की बेहतरी का छोड़ ख़्याल
अब कलम से इजारबन्द ही डाल.
बहुत पुरानी सायरी
काव्यांजलि
मुझे बाथरूम जाना है (माफ़ी चचा)
जीजा मुझे रोके है जो खींचे है मुझे गुस्ल
बाबा मेरे पीछे है भतीजा मिरे आगे।
बाबा मेरे पीछे है भतीजा मिरे आगे।
Sunday, 7 October 2007
' ओल्ड मौंक' मुनीश को उस से भी ओल्ड मौंक का सलाम
कल पी रहे शराब थे होटल के हाल में
अब हाय हाय कर रहे हैं अस्पताल में।
-अकबर इलाहाबादी
अब हाय हाय कर रहे हैं अस्पताल में।
-अकबर इलाहाबादी
जैसे उड़ी जहाज कौ पंछी
सस्ता शेर आज तक लिखा नहीं गया।
इसलिये सारे यारों से माफी के साथ ! ये उम्मीद भी कि उस सबसे सस्ते शेर को हम लोग ही पैदा करेंगे।
अब मैंने कहीं नहीं जाना बाबू साहेब
पहले वही कि
'जंगल में रहता हूँ शेर मत समझना।
मैं तुम्हारा ही हूँ गेर मत समझना।'
ये एंट्री इरफान के नाम :
तोते के पांव आम के कन्धों पे जो पड़े
तोती के आम पक गए पेटी में जो धरे ।
इसलिये सारे यारों से माफी के साथ ! ये उम्मीद भी कि उस सबसे सस्ते शेर को हम लोग ही पैदा करेंगे।
अब मैंने कहीं नहीं जाना बाबू साहेब
पहले वही कि
'जंगल में रहता हूँ शेर मत समझना।
मैं तुम्हारा ही हूँ गेर मत समझना।'
ये एंट्री इरफान के नाम :
तोते के पांव आम के कन्धों पे जो पड़े
तोती के आम पक गए पेटी में जो धरे ।
oonche log oonchi pasand
Bhool nahi pata vo chitvan aj bhi mera chitt,
mera sara kaavya karm hai ussi ke nimitt!
mera sara kaavya karm hai ussi ke nimitt!
Saturday, 6 October 2007
Friday, 5 October 2007
ऋतू बीत ना जाये सावन की
हे अष्ठपुत्री सौभाग्यावती ना सोचो नैहर जावन की
दिल मे उमंग अब भी मेरे, हो भले उमरिया बावन की
अब तो हो सजनी लूप्वती चिन्ता ना किसी के आवन की
सारा आसाढ़ यूं ही बीता ऋतु बीत ना जाये सावन की
दिल मे उमंग अब भी मेरे, हो भले उमरिया बावन की
अब तो हो सजनी लूप्वती चिन्ता ना किसी के आवन की
सारा आसाढ़ यूं ही बीता ऋतु बीत ना जाये सावन की
Wednesday, 3 October 2007
शायरी गुड़गांव की
लो बांध लो नाव इस ठांव ओ बंधु
हमें तो जाना है गुड़गांव बंधु
दिल्ली और गुड़गांव के दरम्यां कोई नदी बहती नहीं
बहोत याद आती है वो लड़की जो मोहल्ले में अब रहती नहीं
हमें तो जाना है गुड़गांव बंधु
दिल्ली और गुड़गांव के दरम्यां कोई नदी बहती नहीं
बहोत याद आती है वो लड़की जो मोहल्ले में अब रहती नहीं
Tuesday, 2 October 2007
उपेक्षित काव्य
धूल धूसरित ट्रक की कमर पर खुदा वो शेर भी एक काव्य है,
किंतु मद में स्वयंभू विद्वता के हो उसकी उपेक्षा ये सहज संभाव्य है
किंतु मद में स्वयंभू विद्वता के हो उसकी उपेक्षा ये सहज संभाव्य है
बहुत मंगल काज है बंधु
बहुत मंगल काज बंधु हमारे ब्लॉग पे हो रहा है
अब चौंक उठेगा ये ज़माना जो पांव पसारे सो रहा है
अब तक तिरस्कृत काव्य को नये सोपान देकर,
बीज उजले भविष्य के हर कॉन्ट्रीब्यूटर बो रहा है
बहुत सुंदर काज बंधु इस ब्लॉग पर हो रहा है
है कोई निर्लज्ज अधम आलोचक?
है कोई निर्लज्ज अधम आलोचक?
...
जो बाट पिटने की जोह रहा है!!
अब चौंक उठेगा ये ज़माना जो पांव पसारे सो रहा है
अब तक तिरस्कृत काव्य को नये सोपान देकर,
बीज उजले भविष्य के हर कॉन्ट्रीब्यूटर बो रहा है
बहुत सुंदर काज बंधु इस ब्लॉग पर हो रहा है
है कोई निर्लज्ज अधम आलोचक?
है कोई निर्लज्ज अधम आलोचक?
...
जो बाट पिटने की जोह रहा है!!
तबला और मैं
मैंने तुझे चाहा अबला समझ कर
मैंने तुझे चाहा अबला समझ कर
मैंने तुझे चाहा अबला समझ कर
...
...
तेरे बाप ने मुझे पीटा तबला समझ कर.
[यह उनके लिए नहीं है]
मैंने तुझे चाहा अबला समझ कर
मैंने तुझे चाहा अबला समझ कर
...
...
तेरे बाप ने मुझे पीटा तबला समझ कर.
[यह उनके लिए नहीं है]
Monday, 1 October 2007
madhu samay
IS diljalon ki mehfil me kuch dillagi bhi jaroori hai'
IS diljalon ki mehfil me kuch dillagi bhi zaroori hai,
madhu premion ka asirvad chahoonga..............
IS diljalon ki mehfil me kuch dillagi bhi zaroori hai
ama RUM chot karti hai seedhi ye WHISKEY to ji hajoori hai!!
IS diljalon ki mehfil me kuch dillagi bhi zaroori hai,
madhu premion ka asirvad chahoonga..............
IS diljalon ki mehfil me kuch dillagi bhi zaroori hai
ama RUM chot karti hai seedhi ye WHISKEY to ji hajoori hai!!
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